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3 May 2024 · 1 min read

कविता – छत्रछाया

नमन मंच🙏

शीर्षक – छत्रछाया

मां की गोद और पिता का साया।
ता उम्र मिलती रहे, ये छत्र छाया।।

न हो कोई महरूम इनके आशीष से, ईश्वर की है ये माया।
ममता लुटाते हैं ये निस्वार्थ ,मिले सबको,न हों कोई पराया।।

मां ने नौ महीने, अपने गर्भ में है पाला।
अपने रक्त से सींच, दिया रूप निराला।।

अमृत पान करा कर ,इस संसार सागर से परिचय कराया।
उंगली पकड़कर पापा ने,हमारी जिंदगी को संभाला।।

कभी सूरज से, तो कभी चांद से ,कहानियों में मिलाया।
कभी गीता से ,तो कभी रामायण से संस्कार का पाठ पढ़ाया।।

मां – बाप है कल्पवृक्ष,अपना स्नेह दोनों हाथ से लुटाया।
मां है जगत जननी,तो पिता है परमब्रह्म,धरा पर भगवान स्वरूप है पाया।।

संस्कार,आचार,विचार दे जीवन का मर्म है समझाया।
जिंदगी में कभी भी लड़खड़ाया , पिता को हमेशा सामने खड़ा पाया।।

मैं बनूं आसरा उनका, मैं हूं उनके जिगर का टुकड़ा।
जीवन यात्रा के अंतिम पड़ाव में, दूर कर सकूं उनका दुखड़ा।।

मैं हूं उनका अंश, चलेगा मुझसे उनका वंश।
उनका हर सपना करूं मैं पूरा,न बनूं मैं कभी कंश।।

राम, कृष्ण, श्रवण कुमार बनूं, यही है जीवन से आशा।
प्रभु देना मार्ग दर्शन, जब कभी आये जीवन में निराशा।।

मां- बाप ने उंगली पकड़ चलना सिखाया, बनूं मैं बुढ़ापे का सहारा।
देना प्रभु सत्बुद्धि, सुख – दुख में साथ दूं, बनूं उनके दिल का तारा ।।

विभा जैन( ओज्स)
इंदौर (मध्यप्रदेश)

Language: Hindi
19 Views
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