एक था वृक्ष
सम्वेदना के पुष्पों
की क्या है व्यथा
सूखे वृक्ष पर सुनो
कलरव की कथा।।
नींव ने यह सोचकर
दरख़्त महान किये
चूमेंगे आकाश यह
सपने जहान किये।
आशाओं के बोझ से
फिर पेड़ झुक गये
टूटी फिर डालियां
लो फल बिखर गए।।
प्रतीक बस वृक्ष हैं
कहना है कुछ और
छलछलाते आंसू हैं
पीत वसंत कुछ और।।
हो सके समझ लेना
दिल की सच्ची पीर
आशा भोर द्वार खड़ी
मन सबका अधीर।।
सूर्यकांत