कलम
1.ये कलम नहीं तलवार है
ये उगलती आग है
कितने गुनाहगारों को जमींदोज किया
कोई नहीं ठहर पाया
इनकी पेनी धारों से
सब नतमस्तक हो जाते हैं इनकी बार से
2. गोरे पन्ने पर खिच दो तो दाग है यह
कमजोर लोगों का ब्रह्मास्त्र है यह
क्रस्ट से भ्रष्ट सब डरते हैं
जाने गोरे पन्ने पर छोड़ देता
कौन सा दाग है यह
3. मैं सत्य असत्य लिखता जाता हूं
दूसरे के भावनाओं को सादे
पन्नों पर पिरोता जाता हूं
निर्जीव होते हुए भी
सजीव का आभास
कराते जाता हूं
सुशील चौहान
फारबिसगंज अररिया बिहार