कर्म ही जीवन
मनुष्य जीवन हर योनि में सबसे,श्रेष्ठ क्यों माना जाता है।
क्योंकि जीवन हर व्यक्ति का,उसके कर्मो से आंका जाता है।।
कर्म रूपी अपने कार्यों को व्यक्ति,जिस रूप में भी फैलता है।
प्रतिध्वनि रूप में उसका कर्म घूमकर,उसके ही सामने आता है।।
अच्छा बुरा और झूठा सच्चा जो भी, करने मनुष्य जाता है।
हर हालत में वो कर्म घूमकर,उसके सामने वापस ही आ जाता है।।
जैसे कर्म करता है व्यक्ति जीवन में,फल उसके अनुरूप ही पाता है।
उसके द्वारा किए कार्यों से ही तो उसका संपूर्ण ये जीवन आँका जाता है।।
क्यों हर व्यक्ति खुद को श्रेष्ठ, और सबको क्षीण बताना चाहता है।
क्यों इस श्रेष्ठता के जाल में फंस, वो अपनों के विमुख हो जाता है।।
हर परिवार और हर समाज केवल व्यक्तियों के समूह से माना जाता है।
मिलजुल कर जो चल पाता वो ही तो सबसे श्रेष्ठतम कहलाता है।।
कहे विजय बिजनौरी जगत में व्यक्ति खाली हाथ ही आता है।
किंतु जब जाता है अपनेपन का खजाना ही बस उसके संग जाता है।।
विजय कुमार अग्रवाल
विजय बिजनौरी