ओ मनभावन बरसात
ओ मनभावन बरसात
तेरे आगमन क़ी खुशी में
प्रतीक्षा करते वन वृक्ष आज
झूमते से नजर आ रहे हैं
तेरेआगमन पर मस्ती सी छाई हैं
मायूसी तपन की पर अब मस्ती है
धरा पर नया आवरण चढाने को
तुम स्ययं ही आ रही हो
वसुंधरा का दुल्हन सा श्रृंगार करने
मानो धरा ने हरी साड़ी को पहना हो
इतनी खुशी नैनो को हरियाली दे रही हैं
ओ मनभावन बरसात
तेरे आगमन से गदगद हो उठी आज धरा
वर्ष भर के इंतजार के बाद आज बगिया महकी
कोयलिया की कुक सुनाई दी हैं कानो में
पागलों सी एक ड़ाल से दूसरी ड़ाल पर
फुदक-फुदक कर खुशी दिखा रही हैं अपनी
आपके आगमन की खुशी में पेड़ लता सभी
वातावरण को खुशबुना बना रही हैं
आम के पेड़ वही बौरा कर इंतजार मे बून्द के
बूंदों के गिरने से मिट्टीकी सोंधी सी खुशबू
सारे वातावरण को महका देती हैं
ओ मनभावन बरसात
सगीतमय माहौल बनाती है बूंदे तुम्हारी
मानो मुनादी करती है तुम्हारे बरसने की
लीची भी प्रतीक्षा में कि तुम बरसो तो मैं
अपने मे मिठास भर लूँ
तेरे आगमन की सुचना पाकर हर पेड़ झूमता
ओर ख़ुशी से पागल सा नजर आ रहा है
फूली नहीं समाती हैं आज बेल ,फूल सभी
फूलों को देती नव चेतना सी आगमन की
खुशी तुम्हारी झूम उठते हैं किसान देश के
सोचकर ही हर्षित होता सभी का मन
ओ मनभावन बरसात
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद
घोषणा:ये मेरी स्वरचित रचना है