“ओम गुरुवे नमः”
कौन देश, कौन मजहब
कौन बिरादरी, कौन जात,
कौन वो इंसान जग में
जो गुरू की न माने बात।
गुरू तो वो ही कहलाए
जो ज्ञान-गंगा बहा दें,
अन्धकार से प्रकाश की ओर
प्राणी को पहुँचा दें।
एक भी अक्षर का ज्ञान दें जो
वो भी गुरू कहलाए,
जिसे देखकर ही आदर से
इंसा का शीश झुक जाए।
माँ से लेकर अनन्त संसारा
मिले जो गुरू मोहे,
शत शत नमन् है आपको
टेकूँ माथ चरण तोहे।
ओम गुरुवे नमः…💐
(मेरी 32वीं काव्य-कृति : ‘माटी के रंग’ से)
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
भारत भूषण सम्मान प्राप्त 2022-23.