ऐ जाने वफ़ा मेरी हम तुझपे ही मरते हैं।
गज़ल
हर्फ़े क्वाफ़ी- अरते
रदीफ़ – हैं
221…..1222……221……1222
ऐ जाने वफ़ा मेरी हम तुझपे ही मरते हैं।
कल प्यार तुझे करते थे आज भी करते हैं।
वैसे तो तेरी आंखें कहती हैं तेरी मर्जी,
हर हाल में है पाना इनकार से डरते हैं।
तुझको ही छुपा रक्खा वर्षों से मेरे दिल में,
इस दिल में सजा लूंगा इकरार ये करते हैं।
जो प्यार मिले तेरा मुमकिन हैं सभी खुशियां,
तकरार कोई होगी ये सोच बिखरते हैं।
प्रेमी हूॅं तुम्हारा मैं ये मेरा खुदा जाने,
पाना है तुम्हें इक दिन में सोच सॅंवरते है।
……..✍️ सत्य कुमार प्रेमी