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20 Dec 2024 · 1 min read

मदारी

अर्णव अरण्य अम्बु और अम्बर
अवनी अनिल अनल।
खर मृग सांप मीन वृष कुंजर,
मर्कट अचल सचल।

कीट पंतगे और जीवाणु,
देव असुर नर नारी।
सबको वही नचाता रचके,
सबका वही मदारी।

कठपुतली सारे के सारे,
उसकी उंगली डोर।
जैसा चाहे डोर घुमाये,
नहीं किसी का जोर।

वही राम शिव दुर्गा गनपत,
वह विरंच गिरधारी।
वही बजाता डुग डुग डमरू,
एकल वही मदारी।

खेल रचाया उसने खुद ही,
वही बजाए तारी।
वही सभा में दर्शक बनता,
बनता वही मदारी।

जैसे नाच नचावे, नाचो,
उसे कभी न जांचों।
वही एक मालिक है सबका,
वही एक है सांचो।

खेल के अंत में देत मजूरी,
रखता नहीं उधारी।
वही पालता पल पल ‘सृजन’
जय हो तेरी मदारी।

Language: Hindi
46 Views
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