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5 May 2024 · 1 min read

संवेदना

संवेदनाओं के गहरे समुद्र में
ज़ब मन हिलोरे ख़ाता है
मनोभावों की ऊँची लहरों में
ज़ब नयन भीग भीग जाते हैं
तब सुनाने को अपनी व्यथा
समझाने को जीवन कथा
ये दिल आतुर हो जाता है
ढूंढे इस भीड़ में कोई अपना
पर सब व्यर्थ हो जाता है
ज्वार भाटा विचारों का ज़ब
उथल पुथल अथाह मचाता है
शांत रहें या चीखे ये मन
अंतर्द्वंद शोर मचाता है
हैं संदेश ए ज़माने तुझको
संवेदनायें नहीं कमज़ोर बहुत
जो रोता है वो साहसी है
वेदना की लहरों से जो
तैर बाहर निकल आता है
ना हारा है ना डरता है
मानवीय संवेदनाओं की
सुनहरी भट्टी में तपकर
फूल सा कोमल ह्रदय
सुंदर मानुष बन जाता है।

4 Likes · 2 Comments · 135 Views

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