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6 May 2024 · 1 min read

ज़िंदगी तो फ़क़त एक नशा-ए-जमज़म है

तेरी यादों में बस इतना खोए रहते हैं,
बिस्तर पर तन्हा तन्हा सोए रहते हैं!!

याद आते हैं तेरे मेरे गूफ्तगू के वो अल्फाज़,
शब-ए-फुरकत में बस पागल से हुए रहते हैं!!

अब तो दर-ओ-दीवार भी समझ लेते हैं,
जिन परेशानियों को हम ख़ुद ही बोए रहते हैं!!

ज़िंदगी तो फ़क़त एक नशा-ए-जमज़म है,
होके इतने मायूस ना यूं ही ख़ाक में पड़े रहते हैं!!

मेरे आंखों पर खुश्क अश्क अब नज़र नहीं आते,
बस वो तो बंद सीपी में मोतियों सा छिपे रहते हैं!!

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