ऐसा कब हो….
ऐसा कब हो…
खुशियों के पल ,
न कोई कोलाहल ,
अपनो का हाथ,
रिश्तों का साथ,
परिवार का सहारा,
फिर कैसे जाए हारा?
यह जो है सबका संग,
भरते है जीवन मे नवरंग,
टूटती अंधेरे की रेखाएं,
खुलती खुशियों की सीमाएं ,
प्रेम स्नेह के अनमोल मोती,
ईर्ष्या अपना अस्तित्व खोती,
जब……..
खुद को बदले,
हम सबसे पहले,
जग बदल जाएगा,
हृदय खुशी से भर जाएगा,
अपेक्षा दुःख का कारण,
पास रखती अपने रण,
पूरी न हो तो मन विचलित,
निराशा घेर लेती फिर चित्त ,
सीमित इच्छाएं,
संतुष्टि पाए,
सुख का आधार,
यही मेरे विचार,