एक ऐसा था इंसान
वो दुनियाँ के गम ले रहा था
बाँट रहा था खुशियोँ के पल
वो हंस रहा था गम ले के
पथ से हटा रहा था काँटा
और बिछा रहे थे सुमन
एक ऐसा था इंसान ……
वो दिखा रहा था
भटके लोगो को पथ
मिटा रहे थे अँधेरा-पन
उनका इरादा बड़ा नेक था
जोड़ रहे थे टुटा बंधन
एक ऐसा था इंसान ……
प्रेम करते थे हर प्राणी को
वो न करता था
खुद पे कभी अभिमान
दीन दुखियों की सेवा को
वो समझता था मान-सम्मान
एक ऐसा था इंसान ……
कहते थे !
उसे जमीं का भगवान
पर वो कहता था
मै हूँ सधारण इंसान
जो बुराई को मिटाता था
सत्य से करता था प्रेम
वो बाँटता-फिरता था ज्ञान
एक ऐसा था इंसान …