एक अधूरा ख्वाब
एक अधूरा ख्वाब
न कर तंग ये मच्छरो
मान जा मुझे सोने दे
कम से कम आज तो
मुझे ख्वाब में खोने दे
न सताओ ये खटमलो
गहरी नींद में सोने दे
ख्वाब में मुझे खुश होने दे
कम से कम आज तो मेरा
सुनहरा ख्वाब पूरा होने दे
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ऐसा आतंक तू न मचा
नींद से मुझे तू न जगा
ख्वाब तो पूरा हो जाने दे
भर नींद मुझे सो जाने दे
ख्वाब में हकीकत बुन लेने दे
कुछ मीठे बोल मित्रों से सुन लेने दे
आशीष कुछ गुरूओं से पा लेने दे
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सारे मच्छर बात मान लेते हैं
चले अपने-अपने घर जाते हैं
खटमल भी वहीं राह अपनाते हैं
मैं सुकून से सो जाता हूँ
और ख्वाबों में खो जाता हूँ
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अपनी कविता पर देख कॉमेंट
हुआ आभास रात में मुझको
सुबह कोई मिलेगा अच्छा संदेश
मैसेज पे मैसेज सुबह आने लगे
नोटिफिकेशन के रिंग बताने लगे
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“शब्द श्री”द्वारा “शीर्षक साहित्य
परिषद” ने मुझे गुन लिया
“ख्वाब” शीर्षक पर लिखी कविता
दैनिक श्रेष्ठ रचना के
रूप में चुन लिया
फिर तो लग गया
आशीषों का भण्डार
मित्रों की ओर से आने लगे
बधाइयों के ढेरों समाचार
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सबके मोबाईल के पटल भर गए
मेरी फोटू वहाँ देख सब फर गए
मैं भी खूब प्रसन्न हुआ
घर में खूब आनन्द हुआ
नींद खुली जब
ख्वाब टूटा तब
श्रेष्ठ के सिर मौर था
श्रेष्ठ कोई और था
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दिनेश एल० “जैहिंद”
19. 01. 2017