एकाकार तुम
अब,जो,
तुम हो शामिल,
इस जीवन में,
तो,यह जगत,
मुझे,
मुझसे, जानना ही नहीं चाहता,
इतने दिन में,
तुम्हारा ही रंग,
चढ गया,है मुझमे,
क्या तुमसे पहले,
अधूरा था जीवन,
सब कहते है,
अब जाकर, इन्द्रधनुषी
हुए हो तुम दोनो।
क्या, तुमको भी,
यही लगता है ,कि,
हम अब एक दूसरे की,
पहचान बन गये है