ऊपर वाला
✒️?जीवन की पाठशाला ?️
जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की इंसान की जिंदगी कितनी अधूरी -खाली और तन्हा लगती है जब वो आसमान में घिरे हुए बादलों को देख रहा हो पर बारिश हो ही ना -जहाँ सब साथ तो हों पर प्यार एवं विश्वास अदृश्य हों -जहाँ बेचैनी भरी आधी अधूरी नींद हो पर ख्वाब ना हों और सबसे बड़ी बात जहाँ वो अपनों के बीच तो हो पर अपनत्व ना हो …,
जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की अमूमन आधी बात सुन कर सामने वाले की बात काटने वाले लोगबाग बातों का अक्सर गलत अर्थ अपनी सोच के हिसाब से निकालते हैं …,
जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की दूसरों को रुलाकर- मजबूरी -बेबसी का फायदा उठा कर हंसने वाले लोगों की हंसी -ख़ुशी की उम्र बहुत लम्बी नहीं होती क्यूंकी जब ऊपर वाला रुलाने पर आता है तब सारी चालाकी -दिमाग -हरकतें -चालें धरें रह जाते हैं …,
आखिर में एक ही बात समझ आई की घाव छुपा कर रखे जाते हैं तो उन घावों को नासूर की शक्ल अख्तियार करने में वक़्त नहीं लगता ,पर जिंदगी कई बार इस तरह से भीड़ में भी तन्हा कर देती है की जहाँ ये समझ ही नहीं आता की घाव दिखाएं भी तो किसको क्यूंकि जिस पर इंसान अपनी जिंदगी से भी ज्यादा भरोसा और प्यार होता है और अगर वो भी राह बदल ले तो सिवाय दर्द को सहेजने के अलावा कुछ नहीं बचता …!
बाक़ी कल , अपनी दुआओं में याद रखियेगा ?सावधान रहिये-सुरक्षित रहिये ,अपना और अपनों का ध्यान रखिये ,संकट अभी टला नहीं है ,दो गज की दूरी और मास्क ? है जरुरी …!
?सुप्रभात?
स्वरचित एवं स्वमौलिक
“?विकास शर्मा’शिवाया ‘”?
जयपुर-राजस्थान