उल्लाला छंद विधान?
?? उल्लाला छंद ??
?विधान – १३-१३
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उल्लाला रुचिकर बने, तेरह कल गिन के करें।
ग्यारहवां कल लघु रहे, चार चरण में रस भरें।
मात्रा सम पद में करो, विषम चरण हो ताल सम।
आठ तीन दो शुभ कला, लगती छंदन माल सम।।
छंद अनूठा हो सरस्, माँ वाणी की तान सा।
गुरुवर पूजा वन्दना, हरिहर के गुणगान सा।
‘तेज’ प्रकाशित कीजिए, काव्य कला कृत-कृत्य कर।
सोहे सज्जन सार से, शोभित शुभ साहित्य सर।
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?तेज✏️मथुरा✍️