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21 May 2024 · 1 min read

इस अजब से माहौल में

इस अजब से माहौल में
भाव बिखरते जा रहे हैं
शब्दों ने
खो दी है अपनी चमक
श्रम वीर के पसीने की बेकदरी
हुई है हर युग में
अफ़सोस,
नर को नारायण कह कर
सत्ता में आए राजनीतिबाजों ने
मज़दूर के आंसुओं का
सौदा कर लिया है
बसों के नाम पर, खेल खेलते रहे
श्रमिकों के पाँव के छाले फूटते रहे
बच्चे भूखे प्यासे तपती धूप में बिलखते रहे
पर ये पत्थर बन चुके सियासतदान
शतरंज खेलते रहे,
मोहरा बना कर इंसान को
पीटते रहे, कभी शह तो कभी
मात खेलते रहे
हरा कर इंसानियत को
खिलखिलाते रहे,
चेहरे चमकाते रहे…..!!!!

हिमांशु Kulshrestha

Language: Hindi
52 Views
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