इस अजब से माहौल में
इस अजब से माहौल में
भाव बिखरते जा रहे हैं
शब्दों ने
खो दी है अपनी चमक
श्रम वीर के पसीने की बेकदरी
हुई है हर युग में
अफ़सोस,
नर को नारायण कह कर
सत्ता में आए राजनीतिबाजों ने
मज़दूर के आंसुओं का
सौदा कर लिया है
बसों के नाम पर, खेल खेलते रहे
श्रमिकों के पाँव के छाले फूटते रहे
बच्चे भूखे प्यासे तपती धूप में बिलखते रहे
पर ये पत्थर बन चुके सियासतदान
शतरंज खेलते रहे,
मोहरा बना कर इंसान को
पीटते रहे, कभी शह तो कभी
मात खेलते रहे
हरा कर इंसानियत को
खिलखिलाते रहे,
चेहरे चमकाते रहे…..!!!!
हिमांशु Kulshrestha