आश दे तो आशना दे (नवगीत)
नवगीत_11
आश दे तो आशना दे ।
देव ! ऐसा ताप न दे ।
सभ्यताओं को निगलने आज विपदाएं
चल पड़ीं हैं व्योम तक ले दुष्ट छमताएँ
धर्म चुप है
कर्म का फल
देव को दानव बना दे ।
है डरी सहमी मनुजता प्रार्थना करती ,
सत्य कहती ,झूठ की वो भर्त्सना करती ,
कौन दोषी
है पता क्या
कौन किसको सान्त्वना दे ?
चीख, दहशत, मौनता और अफ़वाहें ,
ज्ञान , स्वाभिमान ओछे भर रहें आहें ,
मन व्यथित है
देह को हम
और कितनी ताड़ना दे ?
जंग भी हम धीरता से जीत जायेगे,
शान्ति की फिर से नयी इक भोर लायेंगे ,
एकजुट
होकर लड़े हम
दर्द को हम भाव न दें ।
Rakmish Sultanpuri