आधुनिकता : एक बोध
शीर्षक – “आधुनिकता : एक बोध”
रचना – कविता
संक्षिप्त परिचय- ज्ञानीचोर
‘शोधार्थी व कवि-साहित्यकार
मु.पो.-रघुनाथगढ़, जिला सीकर,राजस्थान
मो. 9001321438
चल रहा है सृष्टि-रथ का कालचक्र,
चला सकता भला कौन ! इसे ऋजु-वक्र ?
हर युग को कालों में बांटा,
नहीं रहा किसी काल में, कल का घाटा।
युग को आदि मध्य आधुनिक में बांटा ।
मानवता की गहन सड़क के,
गड्ढों को किसने पाटा ?
लिखित इतिहास बताता है, कल क्या था !
आने वाले कल में क्या था,
ये भी इतिहास बताएगा ।
बहस छिड़ी या युद्ध छिड़ा,
या मैं दोनों के बीच खड़ा।
क्या है आधुनिकता अब ये प्रश्न जड़ा !
तो सुन बताऊँँ तुझको मैं,
मैं काल किसी से नहीं लड़ा !
हर युग में रहा है प्रेम बड़ा।
सुन कटु वचन, मन को कर ले और कड़ा।
जो दिखता है आज मुझे ,
वह कल भी था, आने वाले कल भी होगा ।
बस ! अंतर होगा इतना सा —
‘साधन और बढ़ेंगे ‘
प्रेम घृणा करूणा माया,
जैसे थे वैसे ही हैं।
बस ! व्यक्त करने का बदला अंदाज।
शासन सत्ता कूटनीति,भूख गरीबी और लाचारी।
अब के नहीं ये भी है, भूतकाल से प्रवाहचारी।
देख रामायण महाभारत को ,
राम-सीता भरत लखन शत्रुघ्न ,सूर्यवंशी नारियाँँ।
कुंती पुत्र माद्री सुत, पांचाली कृष्ण।
मेघनाथ कुंभकरण रावण और अहिरावण।
शकुनी दुर्योधन कौरववंशी अंगराज,
भीष्म द्रोण विदुर संजय,
वशिष्ठ हनुमान जामवंत सुग्रीव।
विभीषण नल-नील अंगद।
‘ कुछ समझे हो इनसे ! ‘
पुराकथा नायक उपनायक खलनायक सहायक।
है ये सब फिल्मों में चित्रित,
नाम बदल हो गई ?
सब तो है ये युगों-युगों के,
फिर ! आधुनिकता क्या है ?
धर्म पर करना ना विश्वास,
ये सिखलाता ज्ञान-विज्ञान ।
विज्ञान वैज्ञानिक बनाता है या
वैज्ञानिक विज्ञान बनाता है।
ये है उसका कर्म-धर्म,
अपने प्रयोग पर करता है विश्वास,
परिणाम निकलता है तब,
वो नियम बनाता है।
प्रयोग जिसका तर्क है आधार,
उस पर करता है विश्वास,
कर्म धर्म का तर्काधार,
इस पर वो पाबंदी लगाता है।
तर्क-तर्क में भेद कैसा,
ये कैसा विरोधाभास ।
शासन,दण्ड,भोग,अपराध,कुटिलता,
ये सब ही तो पुराने हैं।
बने हुए हैं आज भी ये,
फिर आधुनिकता क्या है ?
बेरोजगारी पहले भी थी, अब भी है।
किंतु बेरोजगारी है कहाँँ,क्या है यह चक्र ?
काम करने का इच्छुक होना चाहिए !
कर्म-धरातल बहुत बड़ा है।
पढ़ के दो अंग्रेजी अक्षर,
कुछ अदा नई दिखाते।
करने में कुछ सक्षम नहीं,
सब पर रौब जमाते ।
ले हाथ में झंडा विरोध का,
सड़कों पर आ जाते ।
किस फेर में पड़े हो तुम !
बेरोजगारी के नारे से सबको लूटे जाते।
क्या ये आधुनिकता है ?
टीवी,सिनेमा,मोबाइल,कंप्यूटर,
इंटरनेट,विज्ञान -तकनीक का विस्तार,
रेल वायुयान रॉकेट उपग्रह
मिसाइल परमाणु बम ।
मानवता के विध्वंसक भंडार,
क्या ये आधुनिकता है !
फिर आधुनिकता क्या है ?
मांस भक्षण शराब जुआ,
हत्या दुष्कर्म अपहरण लूटपाट,
कम-वस्त्र पहनना, चश्मा लगा के जींस पहनना।
सिगरेट तंबाकू गुटका-पान,
क्या ये आधुनिकता है !
ये आधुनिकता है ! तो भगवान भगोड़े हो गए रे !
फिर आधुनिकता है क्या ?
उस काल से,इस काल तक !
भौतिकी सामाजिक वैचारिक मानसिक,
आर्थिक तार्किक बौद्धिक व्यवहारिक,
इन सब में परिवर्तन होते आए हैं ,
और परिवर्तन होते जायेंगे।
ये आधुनिकता की परिसीमा नहीं ?
वक्त नहीं है किसके पास !
क्यों बैठे माता-पिता के पास।
समाज में हो जो भी,
कुछ भान नहीं है इसका भी ।
छोटे परिवार ! बच्चे बचपन को गँवा चुके।
फैशन फेर पड़ा इंडिया,
छोटी सी कुबुद्धि को,
कहते हैं ये आईडिया ।
आधुनिकता में सब मरते जा रहे,
चलो! पलायन शहरों की ओर,
धूल धूँआ अनजानापन,
बढ़ गया चहुँ ओर।
गाँँवों की ममता खोने को,
तत्पर है ये आधुनिक लोग।
गांव-गगन धरा-धरातल,
सुगंध धूली, गौरैयों का गान,
मोर केका कोयल रव जाने पहचाने ,
खगवृंद के कलरव की तान ।
कहाँँ खो गया रामा-श्यामा !
आ गया अब तो गुड मॉर्निंग-गुड नाइट !
ऐसा बोलने वाले हो जाते सभ्य !
रामा-श्यामा हो गया गवारों की पहचान !
कैसे फिरंगी चालो का,
लाटो की इबादत का।
बन गया देश भंडार बिगड़ी आदतों का ।
क्या आधुनिकता है ये !
यह हर युग में, संस्कृति-सभ्यता का प्रसार हुआ।
विस्तार हुआ,परिष्कार हुआ ।
नयापन लाने के नाम पर,
नग्न संस्कृति मुँँह ताक रही ।
उद्धार करूँँ मैं इसका कैसे !
ये मुझको पुकार रही।
आधुनिकता है क्या !
ये तो आधुनिकता नहीं !
हर बातों पर पर्दा डालने,
का तर्क है आधुनिकता !
स्पष्ट करें क्यों कोई इसको !
हर क्षेत्र में गढ़ी, अलग परिभाषा इसकी ।
कोई नहीं जानता मेरे सिवा !
क्या है आधुनिक !
आधुनिकता : एक बोध है !
मृत्यु पर जीवन का विस्तार है,
आधुनिकता आद्यः निकटता है ।
सात द्वीप जल थल नभ में,
एक नया विश्वास है ।
सृष्टि चक्र में ऊर्ध्वाधर,और क्षितिज पार हैं।
आधुनिकता है जीवन की पहेली,
जितना उलझाओं उतनी ये खेली।
चर-अचर जीवन-मरण से,
ऊपर है ये कैसा बोध !
आधुनिकता में अधिकता हो,
नारी की कर्मठता हो,
संपूर्ण कर्म अधिकारी हो ,
शासन में स्वेच्छाचारी हो !
सब आयामों में भारी हो।
आठ ग्रहों में एक ग्रह पर जीवन क्यों !
नारी ही जीवनदायिनी क्यों !
नारी अणु-बीज शक्ति स्वरूपा है।
तभी पृथ्वी पर इतनी कृपा है।
नारी कोख सृष्टि का प्रतिबिंब !
पृथ्वी संज्ञा का लिंग स्त्री ,
तभी पृथ्वी हैैै जीवन कर्त्री।
पूर्वकालों चर्चा हुई छुटपुट थी,
नारी जीवन का सम्मान कहाँँ था।
चर्चा को बल मिला कुुछ वर्षों में।
नारी ही आधुनिकता है,
नारी ही प्राचीनता है ।
नारी ही सनातन है,नारी ही भवेता है।