Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
8 Dec 2017 · 3 min read

“आज के दौर में इक माँ का डर”

“आज के दौर में इक माँ का डर”
माँ, अकारण चिंता करना छोड़ दो। मैं कोई वनवास को नहीं जा रहीं हूँ कि वहाँ जंगली जानवर मेरा शिकार करने के लिए मुँह बाएँ बैठे हुए हैं। पढ़ने जा रही हूँ, कालेज है, हॉस्टल है, लड़कियों के साथ रहना है, कुछ ही वर्षों की तो बात हैं। पढ़ाई पूरी होते ही आ जाऊँगी और तुम्हारे हाथों का पुलाव खाकर मोटी हो जाऊँगी। चलो, अब रोना-धोना छोड़ो और मुझे गेट तक छोड़ कर आशीर्वाद दे दों, इसी के सहारे मैं अपने हर लक्ष्य को पार करूँगी। डबडबाई आंखों से माँ के गले से लिपटटी हुई कजरी अपने पापा की गाड़ी में बैठकर ओझल हो गई उस माँ के झर-झर झरते नयन के सामने से, जिसने उसे यह बता भी नहीं पाया कि मेरी लाडों, मुझे डर जंगली जानवरों से नहीं है जंगली हरकतों और कुकृत्य विचारों से हैं जो कब, कहाँ और कैसे किसी दूसरे के वजूद पर आक्रमण कर देंगे, किसी को पता नहीं है।
पापा की गाड़ी मद्धिम रफ्तार से चलते हुए, ट्रेन के डिब्बे के शिकंजों में झुलने लगी और सवारी अपने-अपने सर-संजाम को सहजने लगे कि इतने में सीटी बज गई और अफ़रा-तफ़री में रिश्तों की मूक विदाई हो गई। अनकहे और अनुत्तरित आपसी भाव, यादों की रफ्तार में गोता खाते रहें और अपने साँसों के उतार-चढ़ाव से सहज होकर संतोष से समझौता करने को विवश होते रहे। कजरी ने शायद पहली बार यह महसूस किया कि परिस्थितियों से समझौता करना ही जीवन है और सोचते समझते अपने बर्थ पर लेट गई, आँख खुली तो नए शहर की भीड़ में अकेली हो गई। अपने बैग को कंधे पर लटकाए कजरी के कदम अपने मुकाम पर बढ़ तो चले पर जमाने की घूरती नजरों ने उसे महसूस करा दिया कि माँ का डरना और चिंता अकारण न थी। सिहर गई थी अपने आप में एक सुंदर सी लड़की पाकर, जिसे हर किसी की नजरों से छुपाने असफल कोशिश करते हुए तेज कदमों से हाँफते हुए अपने अंजान कमरे में समा जाना चाहती थी जिसके नंबर से उसका नाता था पर सूरत या सीरत उसके कल्पना के आगोश में थे।
वह अपने कालेज के मुख्यद्वार को देखकर ऐसे खुश हो गई मानों उसका अपना घर मिल गया हो। दरवान को अपने आवास का स्वीकृत पत्र बढ़ाते हुए कहा, अंकल जी मैं यहाँ की नई छात्रा हूँ कृपया मेरी सहायता करें। दरवान ने उसकी अँगुली स्पर्श करते हुए कागज ले लिया और हँसते हुए कहा, स्वागत है आप का, हम सब अब आप के अपने हैं यह विद्या का मंदिर है, शौक से पढ़ाई करिए, खुश रहिए, किसी भी जरूरत पर आप की मदद हमारा नैतिक फर्ज है, हे हे हे हे हे । आइए आप को आप का कमरा दिखाते हैं और कजरी डरी हुई हिरनी की तरह उसके पीछे चल दी।
कमरे में उसके साथ रहने वाली अभी नहीं आई थी अकेले उसे रात गुजारनी पड़ी, सुबह कइयों से परिचय हुआ और पढ़ाई कक्षा में खो गई। कुछ सात एक महीने बीत गए कि उसे अपनी खिड़की पर कोई रात में साया नजर आया जिसके बारे में दूसरे दिन उसने अपनी सहेलियों से बता दिया। चर्चा का विषय बन गया वह साया और हर लोग उससे सहानुभूति जताने में अपनी अपनी मंशा से जुड़ गए, कइयों ने उसका सर सहलाया तो कईयों ने उसके पीठ पर हाथ फेर लिया। हद तो तब हो गई कि कुछ एक की नजरें शाम से लेकर देर रात तक उसकी खिड़की पर आकर हाल-चाल पूछने लगी और दरवान जी की सेवा आफरीन हो गई। अचानक एक रात उसके पास पानी समाप्त हो गया तो उसने दरवान कक्ष में फोन कर दिया और दरवान साहब पानी लेकर आ गए, पानी पिलाकर उसके अकेले का फायदा उठा लिए, कजरी तो अर्ध बेहोश होकर रात भर अपने विस्तर पर पड़ी रही, सुबह उसे पूर्णतया लुट जाने का अहसास हुआ और वह चीखने चिल्लाने लगी, अपने शरीर को नोचने लगी, भीड़ जमा हुई और परदा गिरने लगा। कजरी के माँ- बाप को उसके पेट के बीमारी का संदेशा प्रशासन से मिला और वे आकर इस बीमारी को अपनी जबाबदारी समझकर ले जाने को विवश हो गए। विद्यालय अपने संप्रभुता को बचाने के लिए कजरी को तार तार करके, इज्जत का हवाला देकर उसके माँ-बाप को जबरन चुप करा दिया और कजरी अपने बचे-खुचे कंकाल को लेकर उसी घर में वापस आ गई, जहाँ उसकी माँ डर कर ही सही उसे इज्जत के पालने में सुलाया करती थी, तथाकथित जंगली जानवरों से।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

Language: Hindi
208 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
क्यूँ ख़ामोशी पसरी है
क्यूँ ख़ामोशी पसरी है
हिमांशु Kulshrestha
’बज्जिका’ लोकभाषा पर एक परिचयात्मक आलेख / DR. MUSAFIR BAITHA
’बज्जिका’ लोकभाषा पर एक परिचयात्मक आलेख / DR. MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
पुस्तक
पुस्तक
जगदीश लववंशी
ख्वाहिशों के समंदर में।
ख्वाहिशों के समंदर में।
Taj Mohammad
वीर वैभव श्रृंगार हिमालय🏔️⛰️🏞️🌅
वीर वैभव श्रृंगार हिमालय🏔️⛰️🏞️🌅
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
बेटा पढ़ाओ कुसंस्कारों से बचाओ
बेटा पढ़ाओ कुसंस्कारों से बचाओ
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
शिव तेरा नाम
शिव तेरा नाम
Swami Ganganiya
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को उनकी पुण्यतिथि पर शत शत नमन्।
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को उनकी पुण्यतिथि पर शत शत नमन्।
Anand Kumar
वाह रे जमाना
वाह रे जमाना
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
नजर  नहीं  आता  रास्ता
नजर नहीं आता रास्ता
Nanki Patre
2864.*पूर्णिका*
2864.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
कितने बदल गये
कितने बदल गये
Suryakant Dwivedi
कुछ इस तरह से खेला
कुछ इस तरह से खेला
Dheerja Sharma
गरीब
गरीब
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
दुम कुत्ते की कब हुई,
दुम कुत्ते की कब हुई,
sushil sarna
💐प्रेम कौतुक-476💐
💐प्रेम कौतुक-476💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
झूम मस्ती में झूम
झूम मस्ती में झूम
gurudeenverma198
*** चंद्रयान-३ : चांद की सतह पर....! ***
*** चंद्रयान-३ : चांद की सतह पर....! ***
VEDANTA PATEL
आओ कृष्णा !
आओ कृष्णा !
Om Prakash Nautiyal
मंजिलें
मंजिलें
Mukesh Kumar Sonkar
■ सावधान...
■ सावधान...
*Author प्रणय प्रभात*
आंखों में शर्म की
आंखों में शर्म की
Dr fauzia Naseem shad
ख़त पहुंचे भगतसिंह को
ख़त पहुंचे भगतसिंह को
Shekhar Chandra Mitra
लम्हा-लम्हा
लम्हा-लम्हा
Surinder blackpen
शुरुआत
शुरुआत
Er. Sanjay Shrivastava
Active रहने के बावजूद यदि कोई पत्र का जवाब नहीं देता तो वह म
Active रहने के बावजूद यदि कोई पत्र का जवाब नहीं देता तो वह म
DrLakshman Jha Parimal
*हम पर अत्याचार क्यों?*
*हम पर अत्याचार क्यों?*
Dushyant Kumar
शिक्षा और संस्कार जीवंत जीवन के
शिक्षा और संस्कार जीवंत जीवन के
Neelam Sharma
राखी सांवन्त
राखी सांवन्त
DR ARUN KUMAR SHASTRI
मुक्तक
मुक्तक
डॉक्टर रागिनी
Loading...