आज कुछ ऐसी कलमकारी हुई
आज कुछ ऐसी कलमकारी हुई
ये ग़ज़ल तो प्यार से प्यारी हुई
मुज़रिमों में कर लिया शामिल हमें
भूल हमसे तो न कुछ भारी हुई
फिर फ़लक पर छा गई हैं बदलियां
रिमझिमी बरसात की बारी हुई
ज़ख़्म सीने का दिखा पाये नहीं
बात यूँ तुमसे बहुत सारी हुई
फूँक कर पीने लगे हम छाछ भी
दूध से जलने की’ बीमारी हुई
जल उठे दिल के हजारों दाग कल
दुश्मन-ए-जां एक चिंगारी हुई
राकेश दुबे “गुलशन”
23/07/2016
बरेली