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27 Mar 2024 · 1 min read

काश हुनर तो..

हम भी रहे माहिर पतंगबाज
बखूबी जानते थे
दूसरों की पतंग काटना,
लट्टुओं को
इशारे ही इशारे पर नचाना,
कंचे के खेल में
अक्सर अव्वल हो जाना।

मगर
तुम्हारी नजरों का तीखापन
और रंगों की अराजकता,
पूरी तरह विचलित कर देती
मेरी नजर और आत्मा।

दिल से आवाज आती है
काश हुनर तो हम
तुमसे ही सीखे होते,
मेरे कैनवास पर बिखरे रंग
सिर्फ तेरे सरीखे होते।

मेरी प्रकाशित काव्य-कृति :
‘पनघट’ से चन्द पंक्तियाँ।

डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
सुदीर्घ साहित्य सेवा के लिए
लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड प्राप्त।

Language: Hindi
3 Likes · 3 Comments · 121 Views
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