“आओ दीपावली मनाएँ”
आओ किसी के सूने मन में दीप जलाएँ,
हम सब मिलजुल कर दीपावली मनाएँ।
बहुत है गम के अंधेरे, फिर भी कुछ उम्मीद जगाएँ,
आओ किसी के सूने मन में दीप जलाएँ।
एक माँ का लाल गया देश की सीमा पर
मातृभूमि की रक्षा खातिर गोली खाए सीना पर
छीन गई उस दुखियारी के बुढ़ापे की लाठी
जीवन में रह गई अब और क्या बाकी
कुछ पहल कर उन्हें सहारा और उम्मीद दिलाएँ,
आओ किसी के सूने मन में दीप जलाएँ।
गरीबी की मार ऐसी की दो वक्त की रोटी नहीं
चार वर्ष से फसल खराब बात यह छोटी नहीं
सड़कों पर रोशनी औ’ पेट में अन्धेरा घर बनाए
रब से भरोसा उठा आँखों में निराशा के आँसू आए
कुछ पहल कर उन्हें राहत और उम्मीद दिलाएँ,
आओ किसी के सूने मन में दीप जलाएँ।
बहुत है गम के अंधेरे फिर भी कुछ उम्मीद जगाएँ,
आओ हम सब मिलजुल कर दीपावली मनाएँ।
(मेरी प्रथम काव्य-कृति : ‘तस्वीर बदल रही है’ से कुछ अंश।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
सर्वाधिक होनहार लेखक के रूप में
विश्व रिकॉर्ड में दर्ज।