आए बादल
कविता :
आए बादल
आए बादल होकर पागल
बरसा पानी खूब झमाझम
कड़की बिजली खूब कड़ा कड़ा
निकली गर्मी की सारी अकड़
मस्त हवा ने पेड़ों को जब मारे थप्पड़
लगे झूमने बनकर फक्कड़
झुक गई टहनी टूटे लक्कड़
टूटे लक्कड़ पड़े लुढ़क कर
गली में जैसे बड़ा पियक्कड़
भर गया पानी गली गली
लगा टपकने गरीब का छप्पर
चम चमा चम बिजली चमकी
फिर बादल गरजा जोर से
कि जैसे दे रहा हो दस्तक
खड़ा दरवाजे पर कोई पागल
कोई पागल बनकर बादल
आया है जल बरसाने को
दुबक गए हैं लोगों घरों में
कि जैसे आया है यह भी
कोरोना फैलाने को
जैसे भागा हो कोई पागल
लोक डाउन तोड़कर
अपना रंग दिखाने को
वाणी में है गर्जन इसकी
और आंखों में है काजल
पता नहीं अब होगा क्या
समय से पहले हैं आए बादल
आए बादल होकर पागल….
– आनंद प्रकाश आर्टिस्ट
भिवानी 29 मई 2020