आंसुओं की बरसात
तेरी आंसुओं की बरसात हे धरती ! ,
रह रह कर मेरे दिल में आग लगाए ।
क्या कहूं ? कैसे कहूं अब तू ही बता ,
तेरा दुख मुझसे सहा भी ना जाए ।
तेरी बेबसी को मैं समझ सकती हूं ,
मगर मेरी मजबूरियों को तू जान जाए।
मेरा वृक्षारोपण का नन्हा सा प्रयास ,
मालूम नहीं तुझे कितना सुख दे पाए ।
तेरे जीवन और श्रृंगार के लिए काव्य रचूं,
गनीमत है मेरा ये प्रयास कुछ तो रंग लाए ।
मगर मुझे यह भी पता है की ये काफी नहीं ,
जब तक जन जन का ह्रदय ना जाग जाए ।
तेरी सिसकियों की आवाज मैने ही सुनी है ,
तेरे आहों का गुबार मुझे अंतर तक छू जाए ।
तेरे दर्द- ओ- गम की इंतेहा का मुझे एहसास है,
काश ! तेरी पुकार कभी “उस” तक पहुंच पाए ।
कभी तो जोश आए उस दुनिया के मालिक को ,
तेरी आसुओं की बरसात उसके दिल को जलाए।