असफलता को सहजता से स्वीकारें
लगभग हर माता-पिता की इच्छा यही होती है कि उनके बच्चे जहां पढ़ाई में श्रेष्ठ हो तो वहीं अन्य ऐक्टिविटी में भी सबसे आगे हो। यह सोच अच्छी है लेकिन समस्या तो तब उत्पन्न होती है जब बच्चे अपने माता-पिता की अपेक्षाओं पर खरा उतरना तो दूर उसके आसपास भी नजर नहीं आते। तब ऐसी स्थिति निश्चित ही माता-पिता को निराश औरह करने वाली होती है लेकिन इस संबंध में उन्हें बहुत ही संयम से काम लेते हैं संतुलित दृष्टिकोण भी अपना चाहिए। अन्यथा बच्चे पर आपकी नकारात्मक प्रक्रिया उसके कोमल मन-मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव डालेगी। बच्चे की असफलता को अगर माता-पिता सहजता से स्वीकारे तो असफलता क सफलता में परिवर्तित हो जायेगी उन्हें स्वयं भी ज्ञात नहीं होगा, इसके लिए कुछ बातों विशेष ध्यान दें ।
सफलता और असफलता को समझें सफलता हर किसी को अच्छी लगती है और असफलता को कोई अपने पास भी फटकने नहीं देना चाहता, जबकि लोग भूल जाते हैं कि असफलता सफलता की पहली सीढ़ी होती है। इस वास्तविकता को माता पिता जहां स्वयं अच्छे से समझें वही अपने बच्चों को भी समझायें।
स्वीकारें असफलता की चुनौती को :
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आपके बच्चे को असफलता इस बात का प्रतीक है कि
पोषण में कहीं न कहीं कोई कमी अवश्य रह गई है बस उस कमी को पहचानने और उसमें तत्काल सुधार करने की होनी चाहिए, ऐसा करना भी बच्चे की सफलता प्राप्ति के उद्देश्य पूर्ति में अत्यन्त सहायक सिद्ध होगा।
बच्चे की असफलता से सीखें
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बच्चे को मिली असफलता से आप निराश होने के विपरीत इससे प्रेरणा प्राप्त करें, दोबारा असफलता का मुंह न देखना पड़े इसके लिए भी गलतियों को पुनः दोहराने का प्रयास न करें।
बच्चों से उपेक्षापूर्ण व्यवहार नहीं है उचित
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हर माता-पिता को ज्ञात होता हैकि उनका बच्चा कितना
योग्य और कितना सक्षम है। लेकिन अफसोस तो तब होता है कि इस वास्तविकता को नजर अंदाज कर परीक्षा या प्रतियोगिता में पिछड़ जाने पर अपने बच्चों से उपेक्षापूर्ण व्यवहार करने लगते हैं। दूसरे बच्चों के उदाहरण देकर बच्चों को हतोत्साहित करके उन्हें अपमानित करते हैं। जो कि अमानवीय कृत्य है। बच्चों में जितनी क्षमता होगी वह उतना ही प्रदर्शन करेंगे फिर उसके लिए उन्हें दोषी समझना कहां की समझदारी
है।
सहर्ष स्वीकारें
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बच्चे आपके हैं इसलिए अपने बच्चों की खूबियों और सफलता के साथ उनकी कमियों और उनकी असफलता को भी सहर्ष स्वीकारें ।
रुचियों को प्राथमिकता
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बच्चे अगर आपकी उम्मीदों पर खुश उतरते हैं तो उन्हें शाबाशी अवश्य दें। यदि उम्मीदों पर खरा नहीं उतरते हैं तो ऐसी’ स्थिति में उनके साथ प्रेम पूर्ण व्यवहार रखें। दोस्त बनकर उनकी समस्याओं को सुने और समझे उनका मार्गदर्शन करें, वहीं उनकी रुचियों को भी प्राथमिकता दें।
ध्यान रखें :
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बच्चों से उनकी क्षमता से अधिक अपेक्षा प्रायः बच्चों को अवसाद का शिकार बना देती हैं। जिसके कारण कभी कभी बच्चे आत्महत्या जैसा कायरता पूर्ण कदम उठाने से भी पीछे नहीं हटते। आपके बच्चे आपसे बिना शर्त, बिना किसी उपलब्धि को प्राप्त किये, आपसे प्यार और सहयोग की अपेक्षा रखते हैं, अब यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप अपने बच्चों की अपेक्षाओं पर खरा उतरते हैं अन्यथा नहीं।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद