Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
28 Mar 2023 · 5 min read

अलगौझा

वह आया तो रोया
कभी जागा कभी सोया
बार बार ली जम्हाई है
घूंटी देने को तैयार बैठी ताई है
बधाई ले रहे बधाई दे रहे
जो समेटा ना जाए उसे समेट रहे
सब पर खुशी छाई है
दाई मां ने ऐसी ही खबर सुनाई है
पिता का चेहरा और माँ की आंखें
खिल रही मचल रही बाँछे
इस खुशी पर मैं जग लुटा दूं
बता तुझे मैं क्या दूं
दाई को रोका
उसके कहने से पहले ही टोका
धन चाहे धन ले ले
माणक चाहे माणक ले ले
हर वह चीज ले ले चायत की
बस मुझे मुस्कान दिखा दे मायत की
रोम-रोम हो जाए सुखकारी
बस सुना दे मोहन की एक किलकारी
किलकारी से रोमांच चढ़ता है
हाथ आगे को बढ़ता है
होती है वह अनुभूति
जिससे बाहें रही अब तक अछूती
रोम रोम में लहर दौड़ पड़ी
हमें भी दो हमें भी दो कहकर
दादी, काकी ,ताई में होड़ चल पड़ी
अभी तो जी भर देखा भी नहीं
नजर मेरी ही ना लग जाये कहीं
बाँह छूटते ही सूनापन
आखिर सभी दिखाते अपनापन
श्वेद और रोमांच शिखर पर
पत्नी को धन्यवाद अधर पर
सबसे बड़ा उपहार जो दिया है
मैंने इक पल को सदियों सा जिया है
वर्तमान बढ़ता चलता है
एक कल आता है
एक कल जाता है
धीरे-धीरे सजती यादें
जब वह तुतलाता है
मटक मटक कर एक टक आंखें
घूर रही जब होती हैं
इंगला, पिंगला ,सुषुम्ना
तब अपना आपा खोती हैं
ब्रह्मरंध्र खुल जाता है
जब उसको चलना आता है
जब उसको बोलना आता है
जड़ी प्रश्नों की लगती है
बाप बेटे की जोड़ी कितनी जमती है
हर प्रश्न का जवाब मिलता है
हर जवाब से एक प्रश्न बनता है
प्रश्न मेरे आने का
प्रश्न मेरे जाने का
पल नहीं , जरा भी उकताने का
भीनी भीनी यादें जवान होने लगती हैं
पिता की जिम्मेदारियां भी बढ़ने लगती हैं
हर ख्वाइशें पूरी होती हैं
हर फरमाइशें पूरी होती हैं
भले ही खुद की अधूरी रही हों
जो दुख मैंने झेले हैं
अभी उम्र ही क्या है उसकी
जीवन की अठखेलें हैं
हर परेशानी हल होती थी
खुशियाँ घर के पलंग पर सोती थी
संतुष्टि थी कि समेट नहीं पाते थे
खुशी खुशी के हो गए आदी
एक और खुशी
बेटे की कर दी शादी
धूम धड़क्का ढोल धम्मका
आँखों में खुशी मन हक्का बक्का
इतनी दौलत इतनी शोहरत
पुत्र वधु ले आये घर पर
हाथ रखा खुशियों का सर पर
मन में आया अब सुख की खाऊंगा
बहुत कर लिया अब गँगा नहाऊंगा
बेटा बहु वे दोनों भी सहमत हैं
किंतु मेरी पत्नी का अलग मत है
उन्हें सत्य दीख रहा था
मैं उस पर झींक रहा था
वो जननी थी उसकी
मैं अभी सीख रहा था
ठोकर लगेगी भारी
खुशियाँ हो जाएंगी औंधारी
कुछ दिनों बाद पता चला
हुकूमत का स्थानांतरण हो गया है
सुबह से शाम तक का
समीकरण ही बदल गया है
बदलाव ही बदलाव हुआ
जब मेरी पत्नी ने मेरे हाथों को छुआ
कभी चूकि नहीं थी वह
सुबह होते ही कि
हाथ मुँह धोलो कुल्ला कर लो
मैं चाय चढ़ा देती हूँ
तब तक झाड़ू पोछा लगा देती हूँ
तुम उठो तो
सूरज माथे पर आया है
अब तक विभावरी का नशा छाया है
चाय और शब्दों की वो मिठास खास है
आज बहु सास है
घर में
अपने अपने हुकुम चलते हैं
धूमिल होते सपने हैं
दिन रात चक झक
कचर पचर
उसकी चुगली उसका चाँटा
सबसे बड़ा दुनिया में खटवा का पाटा
सब अपने ही ढंग से तंग हैं
दूखते अंग अंग हैं
बहु को सास से शिकायत है
घर का काम ही बेनिहायत है
बुढ़िया तिनका भी इधर उधर नहीं करती
हे भगवान ये जल्दी से क्यों नहीं मरती
100 का बांटूंगी प्रसाद
पूरी कर दे मुराद
बेटा भी विवेक खो रहा
पत्नी का पिछलग्गू हो रहा
कहता है
तुमको दो वक्त का निवाला चाहिए
किसको घर में क्लेश चाहिए
जो मिले चुपचाप खा लो
वरना तो कहीं और पनाह पा लो
बड़ा तंग किया इस निवाले ने
क्या किया बनाने वाले ने
भूख बना दी
एक एक निवाला याद आता है
जब आ आ कर के
वह मुँह खोले जाता है
आज भी वह मुँह खोलता है
जब वह बोलता है
अँगारे बरसते हैं
अरे बेरहम
क्या ये दिन देखने को माँ बाप तरसते हैं
माना कि तू अब कमाने लगा है
हमारे लिए खुद को खपाने लगा है
पर भूल रहा तू
मैंने भी तो खपाया है
झाँक तो सही मेरे अतीत में
माँ बाबा से कैसे मैंने
सदा खुश रहो का आशीष पाया है
मन के पाँव नहीं पंख होते हैं
उड़ने पर सबसे पहले विवेक खोते हैं
इधर उधर भटकता बहुत है
पत्नी के आँसु आएं तो
दिल में खटकता बहुत है
पत्नी सही हो जाती है
माँ में ही खोट नजर आती है
ढलते ढलते ढलती है
खलते खलते खलती है
और एक दिन सबसे बड़ी ठोकर लगती है
बेटा आकर कहता है
अक्षर जो बातों से मुझे सताता रहता है
आग उगलते शब्द
बुड्ढे तू कितना खाता है
ऐसे तो निबाह नहीं होगा
बैठे बैठे खाते हो
खा खा कर मोटे होते जाते हो
तुम फिर से कोई काम धाम
क्यों नहीं कर लेते
देखते नहीं मुझसे अकेले
घर के खर्चे पूरे नहीं होते
शब्द तीर से भेद गए सीने को
अब बच ही क्या गया जीने को
उठती नहीं अब हाथों से तगारी है
कैसे कहूँ बेटा बुढ़ापे की लाचारी है
बहु ने कड़क रुख अपना रखा है
सनक चढ़ाए बैठी है
रट लगाए बैठी है
चाहती वह अलगौझा है
एक मेरे और मेरी पत्नी का ही बोझा है
समझ नहीं आता
किसको किस से अलग करना है
माँ बाप को बेटे बहु से
या बेटे बहु को माँ बाप से
जो भी है इनका ही तो है
किसको अलग करूँ
जो मेरा है उसको
या जो मेरा नहीं हो सका उसको
जिसको नाजो से पाला पोसा है
उसका ही मुझ पर रोषा है
दिया ही क्या का भी धौंसा है
आँखे अब धुँधला गयी हैं
लाचारी में भीतर तक धँस गयी हैं
कानो के पर्दे भी सख्त हो रहे
तन सूखे दरख़्त हो रहे
दिल की दीवारों में बोल गूँजते हैं
अकेले में हम खुद से ही पुँछते हैं
क्या ऐसी संतान की खातिर ही
हमने अपना जीवन खपाया था
ना होती तो अच्छा था
मैं तब भी अकेला रहता
आज भी अकेला हूँ
बात बात पर ताने
असहय हुए उलाहने
पत्नी ये सब कैसे सहती
वह अक्सर अपनी ही कोख को भला बुरा कहती
घुट घुट कर वह घुटती चली गयी
उम्र बीतती चली गयी
आज वह भी चल बसी है
परवरिश पर मेरे दुनियां हँसी है
उसे दिल का दौरा पड़ा था
समय निगोड़ा बड़ा था
उसकी चिता जल रही थी
अरमान जल रहे थे
खुशियाँ राख हो रही थी
मैं अब उठा नहीं पा रहा अपना ही बोझा
मैंने पुत्र को बुला कर कह दिया
आओ कर लें अलगौझा
आओ कर लें अलगौझा

कुछ दिनों बाद मैंने सुना
घर भर में फिर से खुशियाँ छाई हैं
वहीं सब यादें फिर से ताजा हो आईं हैं
खुशी कम ज़ख्म का घाव अधिक हुआ है
बेटे को बेटा हुआ है
वह हो न उस जैसा
बस ईश्वर से यहीं दुआ है
बस ईश्वर से यहीं दुआ है ।।

भवानी सिंह धानका “भूधर”

Language: Hindi
1 Like · 382 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

मैंने देखा है ये सब होते हुए,
मैंने देखा है ये सब होते हुए,
Jyoti Roshni
रौशनी का गुलाम
रौशनी का गुलाम
Vivek Pandey
नाक पर दोहे
नाक पर दोहे
Subhash Singhai
निभाना आपको है
निभाना आपको है
surenderpal vaidya
सांसों के सितार पर
सांसों के सितार पर
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
किये वादे सभी टूटे नज़र कैसे मिलाऊँ मैं
किये वादे सभी टूटे नज़र कैसे मिलाऊँ मैं
आर.एस. 'प्रीतम'
कभी खामोश रहता है, कभी आवाज बनता है,
कभी खामोश रहता है, कभी आवाज बनता है,
Rituraj shivem verma
बसंत (आगमन)
बसंत (आगमन)
Neeraj Agarwal
मुक्ति कैसे पाऊं मैं
मुक्ति कैसे पाऊं मैं
Deepesh Dwivedi
शहर की गर्मी में वो छांव याद आता है, मस्ती में बीता जहाँ बचप
शहर की गर्मी में वो छांव याद आता है, मस्ती में बीता जहाँ बचप
Shubham Pandey (S P)
टूटा दर्पण नित दिवस अब देखती हूँ मैं।
टूटा दर्पण नित दिवस अब देखती हूँ मैं।
लक्ष्मी सिंह
तोरे भरोसे काली
तोरे भरोसे काली
उमा झा
कुछ इस तरह टुटे है लोगो के नजरअंदाजगी से
कुछ इस तरह टुटे है लोगो के नजरअंदाजगी से
पूर्वार्थ
रिश्ते मांगने नहीं, महसूस करने के लिए होते हैं...
रिश्ते मांगने नहीं, महसूस करने के लिए होते हैं...
Ritesh Deo
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
अगर तूँ यूँहीं बस डरती रहेगी
अगर तूँ यूँहीं बस डरती रहेगी
सिद्धार्थ गोरखपुरी
मेरे राम
मेरे राम
Sudhir srivastava
आर्या कंपटीशन कोचिंग क्लासेज केदलीपुर ईरनी रोड ठेकमा आजमगढ़
आर्या कंपटीशन कोचिंग क्लासेज केदलीपुर ईरनी रोड ठेकमा आजमगढ़
Rj Anand Prajapati
कल जिंदगी से बात की।
कल जिंदगी से बात की।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
शुभांगी छंद
शुभांगी छंद
Rambali Mishra
#पैरोडी-
#पैरोडी-
*प्रणय*
मैं मजदूर हूँ
मैं मजदूर हूँ
Arun Prasad
"चुनाव"
Dr. Kishan tandon kranti
अमीरों की गलियों में
अमीरों की गलियों में
gurudeenverma198
बड़े महंगे महगे किरदार है मेरे जिन्दगी में l
बड़े महंगे महगे किरदार है मेरे जिन्दगी में l
Ranjeet kumar patre
सत्य का दीप सदा जलता है
सत्य का दीप सदा जलता है
पं अंजू पांडेय अश्रु
आज ज़माना चांद पर पांव रख आया है ,
आज ज़माना चांद पर पांव रख आया है ,
पूनम दीक्षित
मेरा अक्स
मेरा अक्स
Chitra Bisht
इठलाते गम पता नहीं क्यों मुझे और मेरी जिंदगी को ठेस पहुचाने
इठलाते गम पता नहीं क्यों मुझे और मेरी जिंदगी को ठेस पहुचाने
Chaahat
- लोग भूतकाल नही वर्तमान देखते है -
- लोग भूतकाल नही वर्तमान देखते है -
bharat gehlot
Loading...