अभिमानी की जिंदगानी
सड़क पर, दौड़ में जीतने वाला व्यक्ति, वास्तव में जीत जाता है, और प्रसन्न होता है!
परंतु अभिमान की दौड़ में जीतने वाला व्यक्ति वास्तव में हार जाता है, और दुखी होता है!
सड़क की दौड़, तथा जीवन की दौड़, दोनों अलग-अलग हैं! दोनों के परिणाम भी अलग-अलग होते हैं! सड़क पर मैराथन आदि दौड़ में जीतने वाला व्यक्ति विजयी घोषित किया जाता है! और अनेक बार उसे पुरस्कार भी मिलता है! परंतु जीवन की दौड़ में अभिमान की सड़क पर दौड़ने वाला व्यक्ति भले ही जीत जाए, फिर भी वह स्वयं को हारा हुआ ही अनुभव करता है, तथा संसार के लोग भी उसे हारा हुआ ही मानते हैं!
अब आप विचार कीजिए, सड़क की दौड़ अधिक महत्वपूर्ण है, या जीवन की दौड़ ? सिद्धांत रूप में तो आप यही कहेंगे, कि जीवन की दौड़ अधिक महत्वपूर्ण है! यदि यह सत्य है कि जीवन की दौड़ अधिक महत्वपूर्ण है, तो सड़क की दौड़ में भले ही हम हार जाएं, पर जीवन की दौड़ में तो अवश्य ही हमें जीतना चाहिए! जीवन की दौड़ में वही व्यक्ति जीतेगा, जो अभिमानी नहीं, बल्कि विनम्र होगा!
अब तक यह सारी अलंकारिक भाषा चलती रही! इसका वास्तविक अभिप्राय क्या है?
लीजिए ध्यान से पढ़िए! ऊपर लिखी सारी बातों का वास्तविक अभिप्राय इस प्रकार से है, कि प्रत्येक व्यक्ति अपने अभिमान के पोषण में लगा हुआ है! सारा दिन वह झूठ छल कपट चालाकी बेईमानी से ऐसी क्रियाएं करता है, जिससे उसका अभिमान संतुष्ट होता है, और बढ़ता भी जाता है! कभी किसी से टकराव हो जाए और गलती दूसरे व्यक्ति की हो, तो व्यक्ति उसे सहन नहीं कर पाता! वह मन ही मन सोचता है कि दूसरे व्यक्ति के अनुचित व्यवहार से मुझे बड़ी चोट पहुंची है, मैं इसका बदला अवश्य लूंगा! इसको भी दिखा दूंगा, कि तू कोई वीआईपी नहीं है, और मैं तुझ से किसी भी प्रकार से कम नहीं हूं! ऐसा बदला लेने का विचार मन में रखकर व्यक्ति उस दूसरे दुर्व्यवहार करने वाले व्यक्ति के साथ अभिमान की दौड़ लगाता है, अर्थात अपने अभिमान की संतुष्टि के लिए, उससे भी अधिक दुर्व्यवहार करने की योजना बनाता है! दूसरे व्यक्ति ने एक गलती की, तो यह 2 गलतियां करता है! वह चार गलतियां करता है, तो यह 8 गलतियां करता है! बार-बार उस पर व्यंग्य कसता है! बार-बार उस पर झूठे आरोप लगाकर, उसे बदनाम करता और दुख देता है! लंबे समय तक यह क्रम चलता रहता है! अंत में दूसरा व्यक्ति, इसके अत्याचारों से दुखी होकर, इस अभिमानी व्यक्ति से माफी मांग लेता है, और जैसे तैसे इस दुष्ट अभिमानी व्यक्ति से अपना पीछा छुड़ाकर अपनी जान बचाता है!
इस प्रकार से यह अभिमानी व्यक्ति, अभिमान की संतुष्टि की दौड़ जीत तो लेता है! परंतु जीतने पर भी मन ही मन, यह अपने आप को उससे हारा हुआ अनुभव करता है! क्योंकि उसके द्वारा किए गए अत्याचार, उसे स्वयं को ही सताने लगते हैं!
समाज में भी इसके दुर्व्यवहारों का जिस जिस व्यक्ति को पता चलता है, वह वह व्यक्ति भी अभिमान की दौड़ में जीतने वाले इस व्यक्ति की मानसिक अवसाद अशांति आदि की स्थिति को देखकर, इसे हारा हुआ ही मानता है!
इस प्रकार से यदि कोई झूठ छल कपट चालाकी बेईमानी से अभिमान की दौड़ में जीत भी जाए, तो भी वह वास्तविक जीवन में, एक हारा हुआ खिलाड़ी है! उसे कभी भी शांति नहीं मिलती! इसलिए सड़क की दौड़ में भले ही आप हार जाएं, वह इतना महत्वपूर्ण नहीं है! जीवन की दौड़ में जीतना (नम्रतापूर्वक उत्तम व्यवहार करके दूसरों को सुख देना) ही अधिक महत्वपूर्ण है! जो इस दौड़ में जीत गया, वही वास्तव में विजयी है! वही असली खिलाड़ी है!
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? प्रभु चरणों का दास :-”चंदन”
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