*अब हाल क्या पूछना घाव तो मर गए है*
अब हाल क्या पूछना घाव तो मर गए है
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अब क्या हाल पूछना घाव तो भर गए हैँ,
तुम को देखने के अरमान भी मर गए हैँ।
ऑंखें भी सूर्ख गुलाबी आँसू भी सूखें हैँ,
सजने -संवरने के चाव मन में हर गए है।
उल्फत की गुफ़्तगू हम को न रास आई,
चेहरे पर आते नहीं हाव भाव झर गए है।
घर से भी बाहर हुए न ही घाट जा पाए,
दर से बेदर हो कर अलविदा कर गए है।
तेरे आने की खबर में बहुत इंतजार हुई,
ठंडी हवाओं के झोंकों में हम ठर गए है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)