– अब में तुम्हारी खैरियत कैसे पुछु –
अब में तुम्हारी खैरियत कैसे पुछु –
छोड़ दिया था अपने स्वार्थ में,
तुमको मेने बीच भंवर में,
भुला दिया था तुम्हारे प्यार को,
किसी के आगोश में आकर,
अपने भुला सपने बुला,
भूल गया में तुम्हारा प्यार,
अब जब जिंदगी में मिला धोखा मुझे,
आई अब मुझे तुम्हारी याद,
पर अब में विवश बहुत हु,
नियति का यह खेल निराला,
पर में हु अब संकोच में प्रिये तुम्हारी खै रियत में केसे पुछू,
✍️ भरत गहलोत
जालोर राजस्थान