अब कहां वो बात रही
इश्क़, मोहब्बत, प्यार में अब कहाँ वो बात रही।
स्नेहिल पवित्र बंधन वाली अब कहाँ वो सौगात रही।।
चंद लम्हों में रिश्ते टूट जाते अब यहाँ,
अडिग रहें अपने शब्दों पर अब कहाँ वो औक़ात रही।।
नेह,प्रेम का झूठा दिखावा अब करते लोग यहाँ,
निश्वार्थ प्रेम हो सब का सबसे अब कहाँ वो जात रही।।
बैठा करते थे बुजुर्गों को घेरकर अक्सर हम,
सब अलग-थलग पड़ गए अब कहाँ वो रात रही।।
मुस्कुरा के मिलते थे एक-दूसरे से सब अक्सर,
ख़ुद को ख़ुद से नहीं फ़ुर्सत अब कहाँ वो मुलाक़ात रही।।
बड़े-बुजुर्गों की बातें सुनते थे गौर से सब,
शोर-शराबे की धुन में अब कहाँ वो बारात रही।।
सब रहते थे मिलके साथ-साथ “निश्छल” सदा
बरसती थी नेह की सरिता अब कहाँ वो बरसात रही।।
अनिल कुमार “निश्छल”
पिता का नाम- श्री गंगा चरन “विद्यार्थी”
शहर-हमीरपुर (उ०प्र)