अबोध प्रेम
अवसान दिवस का होने वाला
संध्या कुछ विशिष्ठ सी स्वर
एक पीली शाम के कहानी किसी अतीत की।।
किया बहुत प्रयास आया नही
कुछ याद छन छन पायल की
आवाज गूँजती एक पीली शाम
संध्या करीब की।।
गगन कुछ लोहित स्वछंद मधुमास
पवन बता रही सृंगार शाश्वत
सत्य व्यक्त अव्यक्त मधुर पवन
झोके एक पीली शाम की।।
गमक रही धारा आने वाली सूरज की लाली बता रही दृश्य दृष्टांत प्रभा प्रभात की गति चाल नित्य निरंतर की।।
सामने अचानक बचपन अठखेली प्रेम की परी संजी संवरी वचन प्रतिज्ञा मुक्ति याचना विवश तिरस्कार
पुरस्कार एक पीली शाम की।।
आंखों से आंखे मिली शान्त मन कंठ अवरुद्ध अश्रु की धाराओं ने पल
में ही बता दिया युग को बचपन अठखेली प्रेम का अन्तर्मन अतीत की।।
शब्द नही थे फिर भी अविनि और आकाश में गूंज निर्झर निर्मल प्रेम
डोर टूटने अवसान दिवस की संध्या विशिष्ठ एक शाम पीली की।।
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश