जब सच सामने आता है
अफवाह फैलती है
हवा के झोंके के साथ
तेज और तेज आंधी की तरह
जंगल में आग लगा देती है
जन- जन के मंगल में अमंगल कर देती है ।
कौन है, जो अफवाह फैलाता है?
कैसे वह अफवाह फैलाता है?
कैसे – कैसे हथकंडे अपनाता है
क्या था जरूरी ?
किसी को ऐसा करना।
किसी को क्या मिल जाता है।
फैलता है जब भी अफवाह
कोई ताली बजाता है
कोई वह- वाह करता है
कोई आह भरता है
कोई आंहे भरता है
कोई हंसता/कोई रोता है।
किसी का सम्मान जाता है
किसी का मान जाता है
किसी की इज्जत जाती है
किसी की अस्मत जाती है
कोई ताली बजाता है
कोई किसी के आंसू पोंछता है।
जब परीक्षण होता है
जब निरीक्षण होता है
जब सच सामने आता है
‘खोदा पहाड़ तो
चुहिया निकलती है’ चरितार्थ होती है
सत्य को सत्य रहने दो
न रंग डालो, न तरंग डालो
न मिर्च डालो, न मशाल डालो
न लिवास डालो, न आवरण डालो
एक न एक दिन सत्य ही सामने आता है
बांकी सब हट जाता है।
************************************
स्वरचित और मौलिक:
घनश्याम पोद्दार
मुंगेर