अपने ही करम से //गीतिका//
अपने ही करम से इंसान है तंग
यहाँ जीवन खेल है,जीवन है जंग
असलियत छिपा कर चलते है लोग
किसे पता किसका ईमान हैं बदरंग
चलते नहीं क्यों,कोई सीधे राह में
वक्त के इंतज़ार में जीवन है दरंग
ऐसे नीरस जीवन का क्या फायदा
न खुद का साया न मन है संग
आसमां में बेखौफ़ उड़ता क्यों नहीं
छू नयी ऊचाँई को जीवन है पतंग
दुष्यंत कुमार पटेल “चित्रांश”