अन्तर्मन आह्लादित है,..
अन्तर्मन आह्लादित है,..
(विदाई संदेश)
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(मेरी प्यारी भतीजी सौभाग्यवती सोनम के लिए)
अन्तर्मन आह्लादित है,..
साज दिल में बज रहें हैं।
पर तेरे बिछुड़ने के गम में,
मन के तार पिघल रहे हैं।
ये वक्त भी कितना अजीब हैं,
कब का आया और चला गया।
मेरी नन्हीं मुनिया का,
बचपन लेकर वो चला गया।
ठेहुनियां रोप आती थी तुम,
कहती थी तोतली शब्दों में,
मुझको भी कुछ भात खिला दो,
मैं भी तेरे संग खाउँगी।
था कितना निर्मोही मैं तो,
गुस्से में सब्जी जो खिलाता,
वो थोड़ा सा कड़वा होता।
खाती तुम उसे बड़े चाव से,
कहती मन को भाता है।
खाऊँगी मैं सबदिन अब तो,
तुझसे मेरा नाता है।
वक्त का पहिया घुमा ऐसा,
बचपन कब का गुम हो गया।
तेरी मीठी यादें भी अब तो,
यादों से ओझल हो रहा।
शहनाई अब गूँज रही है,
कर्तव्य की डोर संभालो तुम।
मिथिला की पावन माटी पर,
रिश्तों की लाज बचाना तुम ।
संस्कार ही तेरा असली गहना है,
बड़ो की कभी मत निरादर करना।
प्यार सदा अपनों से करना,
हृदय किसी का ना दुखाना तुम।
एक चुप में, सौ सुख है बसता,
अनर्गल विवाद में ना फंसना तुम।
सत्य की खातिर चुप मत रहना,
पर क्रोध कभी मत करना तुम।
धैर्य,मनोबल की होगी अब परीक्षा,
समझ लेना मेरा आदेश।
मन कभी जो अधीर हो जाए,
पढ़ लेना मेरा संदेश।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २१ /११ /२०२१
मोबाइल न. – 8757227201