अधूरा मिलन
मिलकर भी ना मिल सके आप से
दो क्षण ही सही हम जुड़े आप से
भीतर भीतर हमें भी ग्लानि हुई
मेरे मौन शब्द ना जुबानी हुई
सोचा बहुत सा करेंगे प्रश्न पूरे
समय के करवटों में रहे वह अधूरे
बातें हुई ना किया पुष्प अर्पित
सोचा था कर दूँगा सब समर्पित
कर्त्तव्य का पल्ला हुआ जो भारी
जो समझी विवशता हुई वह नारी
समय का तराजू किधर झुकेगा
बताओ बंधु किस पथ से जुड़ेगा
माया बुआ घरों की विध्वंसक
माया रचकर बनी जो हिंसक
समझ ना सका मैं कैसे भटका
दो राहों में जा कर ही अटका
पश्याताप ज्वाला में जल रहा हूँ
अंबक के आँसू में ही पल रहा हूंँ
कहूँ क्या सखी तुझसे बातें
यादें बनी हैं तीर्थ की राते
सोचा था मैं तो मौन ही रहूँगा
काव्य के भावों मैं नहीं बहूँगा
हा पर दोषों से डरा हुआ हूँ
आत्म ग्लानि से भरा हुआ हूँ
सोच रहा हूँ सत्य वचन हैं
यह तो मेरे प्रेम चरण हैं
इससे दोष निवारण होगा
संजोग योग संचारण होगा