अक्षरांजलि
अक्षरांजलि- एक ऐसा साहित्यिक गुलदस्ता है, जिसमें ज्ञान, भक्ति, प्रेम- इन सबका सब रूपों में एक अद्भुत समन्वय है। शाब्दिक अर्थ में यह शब्दों के माध्यम से की गई आराधना है। यह एक ऐसी महत्वपूर्ण अवधारणा है, जो 51 कलमकारों की लेखनी को पूजा का रूप देता है। इस लेखनी के मूल में समाज सुधार और सामाजिक चेतना के बीज विद्यमान हैं। मसलन :
न आता दौर गर्दिश का
तो अफसाने कहाँ जाते,
दुश्मन चेहरे थे नकाबों में
वो पहचाने कहाँ जाते?
साहित्य में अमरत्व है। भले ही दुनिया खत्म हो जाये, लेकिन साहित्य सदा जीवित रहेगा। साहित्य की कोई जाति, वर्ग, धर्म या सम्प्रदाय नहीं होता। साहित्य किसी दायरे या सरहदों में बंधा हुआ भी नहीं है। साहित्य एक ऐसा ईश्वर है, जिसे सब जानते और मानते हैं। इसलिए अक्षरांजलि आवश्यक है। एक नजर :
दुनिया में वही शख्स होते
ताजीम के काबिल,
जिसने हवाओं का रुख
मोड़ दिया हो।
हकीकत में जियें। अपना उत्साह बाँटें। याद रखें आज का सपना कल की हकीकत है। अपने सपनों की दिशा में निरन्तर आगे बढ़ें। ‘कम्फर्ट जोन’ में रहने से बचें, क्योंकि यह एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ महान सपने मारे जाते हैं, दफना दिए जाते हैं और विस्मृत कर दिए जाते हैं। इन पंक्तियों पर गौर करें :
जरा चलने की कोशिश तो करो
दिशाएँ बहुत हैं,
राहों में बिखरे काँटों से ना डरो
दुआएँ बहुत हैं।
आपका अपना साथी
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
भारत भूषण सम्मान प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।