✍️ये इंकलाबी मुट्ठियां
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मैं इरादों पर अटल हूँ तुम कोशिश जारी रखना
मजबूत है बुनियाद हथौड़े की मार भारी रखना
हुकूमत के ताज जिनके सर उन्हें गुमान है चढ़ा
अवाम के उंगलि पे निशान की फिर बारी रखना
रगों के भीतर उबल रहा है सदियों का वो लावा
कभी तो ज्वाला बनके फटेगा तुम तयारी रखना
अन्याय की सीमा बढ़ेगी तो सब्र का बांध टूटेगा
हमारे जैसे योद्धा से लढने की होशियारी रखना
ये इंकलाबी मुट्ठियां अब आसमाँ में लहरा रही है
कल तुम्हारे गिरेबाँ तक होगी समझदारी रखना
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©✍️’अशांत’ शेखर
19/09/2022