तुम्हारे बार बार रुठने पर भी

बार बार तुम्हारे रुठने पर भी,
तुमको मनाकर मैंने,
दिखाई अपनी सहनशीलता,
टूटने पर तुम्हारा दिल,
मेरी किसी गलती से,
तुमको लगाकर गले से,
मैंने दिखाई अपनी सच्ची दोस्ती।
बार बार तुम्हारे रुठने पर भी,
तुम्हारे चेहरे पर देखकर क्रोध,
हंसाया तुमको मैंने,
कोई लतीफा सुनाकर,
और दिलाया तुमको विश्वास,
तुम्हारे प्रति अपने सच्चे प्रेम का,
तुमको यह कहकर,
तुम्ही हो मेरी छाया,
तुम्ही हो मेरी हमराह,
मेरी खुशी और मेरा ख्वाब।
तुम्हारे बार बार रुठने पर भी,
दिखाया तुमको मैंने,
अपना खून बहाकर,
अपनों से रिश्तें तोड़कर,
सिर्फ तुम्हारे लिए ही,
ताकि तू समझ सके,
मेरा दिल और मेरा प्यार,
और नहीं गया कभी मैं,
तुमसे दूर तुमसे रुठकर,
बार बार तुम्हारे रुठने पर भी—————।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)