“कहाँ नहीं है राख?”
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“कहाँ नहीं है राख?”
हर कोई जनमते हैं
बचपन, जवानी और बुढापा
अपनी उम्र भर जीते हैं
दर्द को भी पीते हैं
मौत एक दिन आती है
जिन्दगी को गले लगाती है
फिर वो हो जाती है खाक,
कहाँ नहीं है राख?
“कहाँ नहीं है राख?”
हर कोई जनमते हैं
बचपन, जवानी और बुढापा
अपनी उम्र भर जीते हैं
दर्द को भी पीते हैं
मौत एक दिन आती है
जिन्दगी को गले लगाती है
फिर वो हो जाती है खाक,
कहाँ नहीं है राख?