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6 Feb 2017 · 1 min read

दोहे

नये वर्ष पर चढ़ गया ,मित्र चुनावी रंग।
नेता चिल्लाने लगे ,जैसे पी हो भंग।
दलों की है लाचारी,बन्द है नोट हजारी।।
बिगुल चुनावी बज गया, करना है मतदान।
पांच वर्ष से अब तलक ,जो थे अंतर्ध्यान।
गांव गलियों में घूमे, चरण “नीरज” के चूमे
जन प्रतिनिधि सब क्षेत्र मे ,छोड़ छाड़ सब काज।
आज कबूतर के चरण, गिरते देखो बाज।
बाज आदत से आओ ,क्षेत्र में शक्ल दिखाओ।
हिंदुस्तान 13 जनवरी पेज 6 पर प्रकाशित
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चुनावी दोहे

फिर से हरने आ गए जनता का विश्वास।
मीठे मीठे शब्द है मन से रक्त पिपासु।(1)
झूठी बाते बोलकर ले लेते है वोट।
जनता को हर वार ही केवल मिलती चोट।(2)
नेताओ के साथ में चलते चमचे लोग।
रोज शाम को लग रहा भच्छा भच्छी भोग।(३)
नीरज नयनो में भरे झरे बराबर नीर।
कैसे जनता की मिटे गी बनवारी पीर।।(4)
बहुत बड़ा ब्रम्हास्त्र है मतदाता का वोट।
बड़े बड़े दिग्गज रहे है धरणी पर लोट।(5)
14 फरवरी को दैनिक हिंदुस्तान बरेली में प्रकाशित

Language: Hindi
1 Like · 358 Views
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