Dr MusafiR BaithA Tag: कविता 260 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Dr MusafiR BaithA 25 Oct 2024 · 1 min read कविता की आलोचना में कविता पढ़िए गीता फिर बन किसी की आंखमूंद अनुगामी परिणीता जिमी द्रौपदी वरगाही या पांच पति तक पाकर पति निज घर बार बसाइए और दर्जनों संतान कमाइए! Hindi · कविता 19 Share Dr MusafiR BaithA 12 Oct 2024 · 1 min read थोथा चना ©मुसाफ़िर बैठा वसुधैव कुटुम्बकम सारे जहाँ से अच्छा... है प्रीत जहाँ की रीत सदा... सत्यमेव जयते आदि इत्यादि जैसे उच्च उत्तंग उदात्त उन्मत्त मानवीय भावों के ठकुरसुहाती छद्म कपटी उद्घोष जहाँ हैं... Hindi · कविता 27 Share Dr MusafiR BaithA 11 Oct 2024 · 1 min read हंसी / मुसाफिर बैठा हंसी अन्य वजहों से लगती है और गुदगुदी लगने लगाने से भी एक हंसी हमारी वह भी हो सकती है जो हमारे संभावित हत्यारे हमारी हत्या करने से पहले हममें... Hindi · कविता 20 Share Dr MusafiR BaithA 11 Oct 2024 · 1 min read वह भलामानस / मुसाफिर बैठा वह खुद को बुद्धिवादी मानता है यादव शक्ति पत्रिका चलाता है जैसे कि यादव और बुद्धिवादी सहजमेल के शब्द हों वह पेरियार को मानता है पेरियार से ज्यादा ललई सिंह... Hindi · कविता 17 Share Dr MusafiR BaithA 1 Oct 2024 · 1 min read ब्लैक शू / मुसाफिर बैठा मेरे स्कूल ड्रेस में शामिल था काले जूते पहनना काले जूते का मतलब ब्लैक शू और ब्लैक शू मतलब जो जूते काले हैं मगर केवल चमड़े के हैं यह बाद... Hindi · कविता 33 Share Dr MusafiR BaithA 1 Oct 2024 · 1 min read न छुए जा सके कबीर / मुसाफिर बैठा कबीर के नाम पर लोगों ने भले ही एक पंथ ही खड़ा कर डाला पर कबीर की तरह बाजार में खड़ा होकर सबकी खैर मांगने का माद्दा उनमें कहां आया... Hindi · कविता 29 Share Dr MusafiR BaithA 1 Oct 2024 · 1 min read आदिवासी और दलित अस्मिता का मौलिक फर्क / मुसाफिर बैठा एक आदिवासी बुद्धिजीवी अन्य समाज से पिछड़ कर भी अपनी सभ्यता और अस्मिता को आगे रख अकड़ता है। एक दलित बुद्धिजीवी अन्य समाज से पिछड़कर अपने हक के रूप में... Hindi · कविता 28 Share Dr MusafiR BaithA 1 Oct 2024 · 1 min read वंचित कंधा वर्चस्वित कंधा / मुसाफिर बैठा मैं आपके कंधे से अपना कंधा मिलाकर चलना चाहता हूं अभी संघर्ष तो आपके कंधे के बराबर अपने कंधे को करने का ही है मिलाकर चलने का स्टेज अगला है... Hindi · कविता 44 Share Dr MusafiR BaithA 1 Oct 2024 · 1 min read न कभी सच हो सकने वाली मेरी कल्पना / मुसाफिर बैठा धरती गोल है सच है मगर दृश्य सच नहीं है यह इधर सवर्ण जात को मैं जात के उत्पात को मैं धरती से गोल होते देखना चाहता हूं असुंदर दृश्य... Hindi · कविता 41 Share Dr MusafiR BaithA 1 Oct 2024 · 1 min read वयोवृद्ध कवि और उनका फेसबुक पर अबतक संभलता नाड़ा / मुसाफिर बैठा कविता के मोर्चे पर क्रांति कर थक गया कवि अब फेसबुक पर अपनी संवेदना, वेदना और उत्तेजना का बाजार सजा बैठा है सबूत इधर इतने कि कवि फेसबुक के लिए... Hindi · कविता 22 Share Dr MusafiR BaithA 29 Sep 2024 · 2 min read बारिश पर तीन कविताएं /©मुसाफिर बैठा 1. बारिश, रंग और जाति ~~~~~~~~~~~~~~ बारिश की कोई तय जाति नहीं होती न ही उसके पानी का कोई रंगधर्म होता है मगर उसे पाने को सभी रंग की जाति... Hindi · कविता 34 Share Dr MusafiR BaithA 27 Sep 2024 · 1 min read मित्र धर्म और मैं / मुसाफिर बैठा मित्र हूं तेरा मैं मतलब यह नहीं इसका कि मित्रता विरुद्ध के तेरे कर्मों को भी पचा जाऊंगा चुप्पी उस पर लगा जाऊंगा बल्कि करूंगा आगाह तुझे खबरदार करता रहूंगा... Hindi · कविता 20 Share Dr MusafiR BaithA 16 Sep 2024 · 1 min read मित्रता का मेरा हिसाब–किताब / मुसाफिर बैठा मित्रता का मेरा हिसाब–किताब जो अंधविश्वास का शत्रु नहीं बेशक, मैं उसका मित्र नहीं जो अंधविश्वास–विरुद्ध है वह भी जरूरी रूप से मेरा मित्र नहीं मित्रता के मेरे हिसाब में... Hindi · कविता 32 Share Dr MusafiR BaithA 1 Sep 2024 · 1 min read *जाति रोग* / मुसाफिर बैठा हर कोटरे में आपसी प्रेम दूसरे कोटरे से द्वेष दूरी मानो, जात जात में प्रेम के लिए खांचा भी है बड़ा जरूरी कोटरे में कैद कुंठित कुटुंब भाव वसुधैव कुटुंबकम्... Hindi · कविता 45 Share Dr MusafiR BaithA 31 Aug 2024 · 1 min read नुक्ते के दखल से रार–प्यार/ मुसाफ़िर बैठा आप मेरा प्रिय होकर भी जब जब, जहां जहां अवैज्ञानिक सोचेंगे जो मुझे नितांत अप्रियकर है मैं बेशक, वहां वहां दम भर नुक्ता लगा आऊंगा यह सोचकर कि मेरे इस... Hindi · कविता 41 Share Dr MusafiR BaithA 28 Aug 2024 · 1 min read एक प्रगतिशील कवि की धर्म चिंता / मुसाफिर बैठा कवि को राजनीति के फेर में पड़े राम की चिंता है अयोध्या के राम मंदिर की छत के चूने की चिंता भी है कवि को चिंता है उसे धर्म बचाने... Hindi · कविता 59 Share Dr MusafiR BaithA 15 Aug 2024 · 1 min read बूंद और समुंद बूंद हूं मैं अविरल प्रवाहमान वैज्ञानिक सोच का पहरुआ। समाज को वैज्ञानिक सोच का समंदर बना देखने का अभिलाषी। मगर, सैलाब को जब मनुष्य के, इस इक्कीसवीं सदी में धर्मस्थलों... Hindi · कविता 59 Share Dr MusafiR BaithA 15 Aug 2024 · 1 min read घृणा के बारे में / मुसाफ़िर बैठा घृणा उगने उगाने के लिए सबसे उर्वर भूमि है धर्म धर्म में पड़कर एक आदमी दूसरे धर्म के आदमी से इतना अलग हो जाता है भंगुर व्यवहार हो जाता है... Hindi · कविता 34 Share Dr MusafiR BaithA 15 Aug 2024 · 1 min read बधाई का गणित / *मुसाफ़िर बैठा एक टेबल–चिन्तक मित्र का एसएमएस-सन्देश आया - इस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हम एक बार पुनः संकल्पित हों इस बात के लिए कि स्वतंत्रता का सम्मान करेंगे अक्षुण्ण रखेंगे... Hindi · कविता 62 Share Dr MusafiR BaithA 8 Aug 2024 · 1 min read फ़ेसबुक पर पिता दिवस / मुसाफ़िर बैठा कोरोना की तरह फैलकर बीत गया पिता दिवस साथ इसके फ़ेसबुक पर पिताई रस्मी हुंआ हुंआ भी थम गया शुक्र है कि इस वायरस का जीवन चक्र तय था चौबीस... Hindi · कविता 57 Share Dr MusafiR BaithA 8 Aug 2024 · 1 min read घृणा के बारे में / मुसाफ़िर बैठा घृणा उगने उगाने के लिए सबसे उर्वर भूमि है धर्म धर्म में पड़कर एक आदमी दूसरे धर्म के आदमी से इतना अलग हो जाता है भंगुर व्यवहार हो जाता है... Hindi · कविता 36 Share Dr MusafiR BaithA 17 Jul 2024 · 1 min read इच्छा मेरी / मुसाफ़िर बैठा मैं चाहता हूं मैं फेसबुक पर या जहां कहीं भी ऑनलाइन या ऑफलाइन जितना भी हगूं मूतूं जो भी हगूं मूतूं वह कविता बन जाए या कविता कहला जाए! [Note... Hindi · कविता 52 Share Dr MusafiR BaithA 6 Jun 2024 · 1 min read नए मुहावरे में बुरी औरत / मुसाफिर बैठा खुद को जभी आप मुहावरे में बुरी औरत कहती हैं बाय डिफॉल्ट स्वयं को इस खांचाबद्ध जाति और संप्रदाय आधारित समाज व्यवस्था में मुट्ठीभर अच्छी औरतों में गिनते हुए गर्व... Hindi · कविता 58 Share Dr MusafiR BaithA 6 May 2024 · 1 min read ईमानदारी की ज़मीन चांद है! ईमानदारी की ज़मीन चांद है बेईमानी की ज़मीन धरती चूमना चांद को बेहद मुश्किल कठिन धरती को छुए बिना रहना भी धरती से चांद का सायेदार रिश्ता है! Hindi · कविता 82 Share Dr MusafiR BaithA 5 May 2024 · 1 min read तेरे लिखे में आग लगे (लीलाधर मंडलोई की एक कविता से प्रेरित) तेरे लिखे में अगर दुःख है दुःख सबका है तो तेरे लिखे में आग लगे कि सबका दुःख कोई ओढ़ नहीं सकता ओढ़ना... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 1 86 Share Dr MusafiR BaithA 5 May 2024 · 1 min read सतर्क पाठ प्रेमचंद का प्रेमचंद न तो संघियों-बजरंगियों को एकदम से तीता लगने लायक हैं न ही बिल्कुल मीठा! प्रेमचंद न तो स्त्रीवादियों को एकदम से सुहाने लायक हैं न ही बिल्कुल ठुकराने लायक!... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 1 50 Share Dr MusafiR BaithA 5 May 2024 · 3 min read मरने से पहले भरपूर जीवन जीकर मरा था आलोचक मगर मरने से दशकों पहले कहिये जब वह युवा ही था और निखालिस कवि ही 'मरने के बाद' शीर्षक से कविता लिख डाली थी... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 46 Share Dr MusafiR BaithA 5 May 2024 · 1 min read फ़ेसबुक पर पिता दिवस कोरोना की तरह फैलकर बीत गया पिता दिवस साथ इसके फ़ेसबुक पर पिताई रस्मी हुंआ हुंआ भी थम गया शुक्र है कि इस वायरस का जीवन चक्र तय था चौबीस... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 1 56 Share Dr MusafiR BaithA 5 May 2024 · 1 min read कोविड और आपकी नाक परंपरा से आपकी नाक और जुबान चाहे जिस कदर की भी ऊंची रही हो, उच्चत्व में दीक्षित रही हो कोविड में उद्दाम उसे न छोड़िए नियंत्रण में रखिये रखिये मास्क... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 59 Share Dr MusafiR BaithA 5 May 2024 · 1 min read कब बोला था कोरोना है ठीक है भैवे उलटबांसी में उलझ मगर शंख बजाने को कब बोला था पटाखा फोड़ने को कब बोला था जय श्रीराम बोलने को कब बोला था नाइन टू... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 55 Share Dr MusafiR BaithA 5 May 2024 · 1 min read जय रावण जी वह बहुजन युवा नया नया नौकरी में आया है गाय टाइप से रहा किया है कुछ महीनों तक अब थोड़ा थोड़ा खुल रहा है खुल बदल कर बैल बनने की... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 44 Share Dr MusafiR BaithA 5 May 2024 · 1 min read घंटीमार हरिजन–हृदय हाकिम जुम्मा जुम्मा आठ दिन भए किरानी से साहब बन बौराया एक सरकारी दफ़्तर का वह हरिजन–हृदय हाकिम कमरे में बेल लगवा कर और उसे बजा बजा कर बाहर बैठाए गए... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 72 Share Dr MusafiR BaithA 5 May 2024 · 1 min read मजबूर रंग हर रंग बेरंग को भगवा बनाकर बदरंग बीमारू करने को उतारू दया के पात्र हैं मजबूर भगवे कि उनके अपने खून का रंग भी हर खून–रंग की तरह ही वह... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 42 Share Dr MusafiR BaithA 5 May 2024 · 1 min read खतरनाक आदमी पत्थर मिट्टी खर-खम्भे में हर कहीं मिथ्या को ढूंढना भगवान खोजना मरे डरे अतिशय लाभ लोभ लालच में पड़े आदमी की निशानी है ऐसे आदमी पोटेंशियली खतरनाक हो सकते हैं। Poetry Writing Challenge-3 · कविता 46 Share Dr MusafiR BaithA 5 May 2024 · 1 min read मेहनत और तनाव मेहनत करने में तनाव का साथ लेना भी पड़ सकता है जबकि तनाव पालने के लिए मेहनत करने की अनिवार्यता कतई नहीं होती! Poetry Writing Challenge-3 · कविता 1 73 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read गाय, गौदुग्ध और भक्त भक्तो! गायों ने, गाय के किसी प्रतिनिधि ने तुम्हारे समीप जाकर तेरे कानों में फुसफुसा कर भी कभी दावा किया क्या कि मैं तेरी मां हूं जो हल्ला, होहल्ला करके... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 39 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 2 min read भांथी* के विलुप्ति के कगार पर होने के बहाने भांथी जैसे विलुप्ति के कगार पर पहुंचे देसी यंत्र किसी किसी लोहार बढ़ई के दरवाजे पर अब भी गाड़े और जीवित बचे मिल सकते हैं गांवों में जो कि सान... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 69 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read गौभक्त और संकट से गुजरते गाय–बैल जुताई बुआई जबसे होने लगी मशीनों से बछड़े हुए जान के जवाल किसानों के लिए गाय माता तो एकदम अबोध जबकि इधर नहीं चाहते गोभक्त भी कि कोई गाय बैलों... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 47 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read थोड़ी है (राहत इंदौरी से प्रेरणा लेते हुए) सिर्फ एक जानवर के गोश्त को अपने धरम के विरुद्ध खाते में, डाल रखा है उन्होंने गौपूँछ पकड़ अपने परलोक को संवारने के लालच... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 33 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 2 min read वर्णव्यवस्था की वर्णमाला [मंगलेश डबराल की ’वर्णमाला’ कविता से प्रेरित] एक भाषा में अ लिखना चाहता हूं अ से अच्छाई अ से अत्याधुनिक लेकिन लिखने लगता हूं अ से अत्यंत बीमार वर्णवादी अ... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 37 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read राजनीति में फंसा राम राजनीति में फंसा राम खुद नहीं फंसा है भगवों द्वारा फंसाया गया है गो कि ईश्वरीय कहानियों में भी राम मर चुका है मगर जिन्दा है वह लोक आस्था में... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 38 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read यथार्थ से दूर का नाता वह मुझसे घृणा रखते हुए और, उसे जज्ब कर बाहरी तौर पर प्यार का इजहार ऐसे करता है जैसे कि मेरा मान भी उसने अपनों में अटा रखा हो! जैसे... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 31 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read थोथा चना वसुधैव कुटुम्बकम सारे जहाँ से अच्छा... है प्रीत जहाँ की रीत सदा सत्यमेव जयते आदि इत्यादि जैसे उच्च उदात्त उन्मत्त मानवीय भावों का ठकुरसुहाती छद्म कपटी उद्घोष जहाँ हैं रहें... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 40 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read नरभक्षी एवं उसका माँ-प्यार वह देश का शाह बन गया है शाह बनकर नए नए नाटक करने लगा है नाटक करने में उस्ताद बन गया है जब प्रांत का वह शाह बना था नरसंहार... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 41 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read गवर्नर संस्था अब जाकर कुछ मायने मिला सफेद हाथी पालने के मुहावरे को केन्द्रीय आज्ञाकारिता जब बिना चूँ चां के सक्रिय होकर शिरोधार्य हुई और पद की गरिमा गिरकर जब ग्राउंड ज़ीरो... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 41 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read गले लोकतंत्र के नंगे राजनीति में पार्टी एक समुच्चय है आदमी का लोकतंत्र के नाम पर निहित स्वार्थों में अटता बंटता हित समूह विकसनशील समाज की कानों से देखने वाले और आंखों से सुनने... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 44 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read जन्मपत्री जिंदों की भी नहीं होनी चाहिए मुर्दों की तो होती नहीं जन्मपत्री जबकि जन्मपत्री वाले ही मुर्दा बनते हैं ब्राह्मण-दिमाग की उपज होती है यह गंदगी जो फैल पसर कर... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 30 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read मैं धर्मपुत्र और मेरी गौ माँ गाय मेरी माता है क्योंकि गाय मुझे मेरे मरने के बाद मेरे द्वारा पृथ्वी पर किये गये समस्त पापों-कुकर्मों को नजरअंदाज़ कर स्वर्ग के रास्ते में पड़ने वाली वैतरणी पार... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 62 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read कविता-कूड़ा ठेला कविता जैसे निबला की पत्नी और गांव भर की भौजाई होकर रह गई है जिसके भी चाहे जो मन में आए कविता के नाम पर ठेले जा रहा है इस... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 46 Share Dr MusafiR BaithA 4 May 2024 · 1 min read कवि होश में रहें आसमां को झुकाने में यकीं नहीं रखो कवि याद रखो कवि एक तो तुम्हारे सिर के ऊपर से ही आसमां शुरू होता है इसलिए उसके झुकने झुकाने की बात ही... Poetry Writing Challenge-3 · कविता 33 Share Page 1 Next