Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 May 2024 · 3 min read

मरने से पहले

भरपूर जीवन जीकर मरा था आलोचक
मगर मरने से दशकों पहले
कहिये जब वह युवा ही था
और निखालिस कवि ही
‘मरने के बाद’ शीर्षक से कविता लिख डाली थी एक
जिसमें जीवन के सुखों के छूटने की सघन तड़प थी।

जिस हिन्दू संस्कृति में संसार एक माया है
और मोह माया त्यागने की पैरवी भी
जिस हिन्दू संस्कृति के राग से खिंचकर
आलोचक प्रकट वाम से यूटर्न कर
बन गया था घोषित बेवाम
छद्म हिंदुत्व में समा
आ गया था अपने स्वभाव पर
उस आलोचक ने पता नहीं क्यों
धर्मग्रन्थों में विहित असार संसार से राग दिखा
मृत्यु से भय का चित्र खींच दिया था
अपनी युवा काल की कविता में ही
युवा कविता में ही

आलोचक तबतक वामपंथी भी न बना था गोया
आलोचक तो नहीं ही
तब कवि बनता आलोचक
सुखी सवर्ण मात्र था
कॉलेज में पढ़ता हुआ
नवोढ़ा पत्नी से प्यार पाता हुआ

आलोचक ने अपनी मरणधर्मी कविता में
जीवन से केवल सुख के शेड्स लिए थे
शेड्स में प्रकृति के इनपुट्स थे
जैसे, आलोचक पूर्व के इस कवि को
चांद पसंद था बेहद
इधर जीवन में उसके चांदी ही चांदी थी
कवि को तालाब पसंद था समंदर पसंद था
इधर द्विज जीवन में भी तो
तालाब से मनों पार समंदर भर
सुखद आलोड़न था समाया उसके

मरने के भय में
जीने को याद कर गया था आलोचक
अपनी कविता में धूप के खिलने को
अपने रजाई में दुबकने के आलस्य से याद कर के
आलोचक के कवि को
उस साधारण जन की याद नहीं आती अलबत्ता
जिसका जीवन ही दुपहर है
दुपहर की सतत धूप का रूपक है
धूप जो तपती हुई चमड़ी को जलाती है

ग्रीष्म की चांदनी कवि-शरीर पर ठंडक उड़ेल देती है
मग़र उस श्रमण काया का क्या
जिसकी मेहनत को न ही कोई यश नसीब न ही मरहम
बरसात की हरियाली का बेपूछ फैलाव
भले ही हो ले कवि को प्यारा
लेकिन बरसात से उपजी बाढ़, बर्बादी और उजाड़ की चिंता
नहीं है उसके मरने के गणित में
जो मरने के पहले ही मार देती है प्रभावितों को
कि धूल भरी सड़क की मरने के वक़्त की याद में होना
बराबर नहीं हो सकता कतई
धूल फांकने को अभिशप्त ख़ुश्क जीवन के
फलों की बौर की गंध मरने के वक़्त की चिंता में
निश्चिंत पेट जीवन जियों के यहाँ ही अट सकती है
फल उगाने में लगे अदने मजूरों के मन मस्तिष्क में नहीं
कोयल की कूक किसे कितनों को मौज देती है
और कितनों को हूक, प्रश्न यह भी है
बच्चों की खुशी से चमकती आंखें भी हैं बेशक जीवन में
मग़र कविता में बच्चों की ऐंठी आँत और बुझी आँखों की
जगह ज्यादा है जो जीवन में नहीं है या काफी कम है
पत्नी के प्रेम से बिछोह का बिम्ब अगर
पत्नी पाने के ऐन युवा दिनों ही
कवि की कविता में आता है तो
यह आलोचना के वायस है
झंडों से सजा मेहनतकशों का जुलूस
जरूर एक सहानुभूत-आशा हो सकता है
मग़र कोई स्वानुभूत-आश्वासन हरगिज नहीं
कोरोना लॉक डाउन में अप्रवासी मजदूरों के
जत्थे पर जत्थे सड़कों पर बाल बच्चे बूढ़े बुजुर्गों संग रेंगते बदहवास हैं बेहाल हैं
और समुद्र पार से आती हुई मनुष्यता की जीत की
नई नई खबरों की चिंता करने में लगे हो कवि
खूब करो
पहले कुछ चिंता तो अपने घर की भी कर लो
जब मरोगे सब छूट जाएगा सबका छूट जाता है
पर मनुष्यता की कई जरूरी चिंताएं तो
तुम्हारे जातिग्रस्त जीवन से ही छूटी पड़ी हैं।

ऐ पारलौकिक जीवन के विश्वासी कवि
इहलोक के सुखों को नाहक ही गिनने में फँसे हो
गिनना ही है तो सुखों को गिनो, किये अपने पापों को गिनो
और मरने से पहले अपना परलोक तो पक्का करते जाओ!

Language: Hindi
19 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Dr MusafiR BaithA
View all
You may also like:
हम तुम
हम तुम
Sandhya Chaturvedi(काव्यसंध्या)
दिल से दिल तो टकराया कर
दिल से दिल तो टकराया कर
Ram Krishan Rastogi
चलो मतदान कर आएँ, निभाएँ फर्ज हम अपना।
चलो मतदान कर आएँ, निभाएँ फर्ज हम अपना।
डॉ.सीमा अग्रवाल
उम्र पैंतालीस
उम्र पैंतालीस
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
मुहब्बत में उड़ी थी जो ख़ाक की खुशबू,
मुहब्बत में उड़ी थी जो ख़ाक की खुशबू,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
#लघुकथा / #बेरहमी
#लघुकथा / #बेरहमी
*Author प्रणय प्रभात*
पर्यावरण सम्बन्धी स्लोगन
पर्यावरण सम्बन्धी स्लोगन
Kumud Srivastava
अभी नहीं पूछो मुझसे यह बात तुम
अभी नहीं पूछो मुझसे यह बात तुम
gurudeenverma198
"ढाई अक्षर प्रेम के"
Ekta chitrangini
घट भर पानी राखिये पंक्षी प्यास बुझाय |
घट भर पानी राखिये पंक्षी प्यास बुझाय |
Gaurav Pathak
"सेवा का क्षेत्र"
Dr. Kishan tandon kranti
पति-पत्नी, परिवार का शरीर होते हैं; आत्मा तो बच्चे और बुजुर्
पति-पत्नी, परिवार का शरीर होते हैं; आत्मा तो बच्चे और बुजुर्
विमला महरिया मौज
संसार में कोई किसी का नही, सब अपने ही स्वार्थ के अंधे हैं ।
संसार में कोई किसी का नही, सब अपने ही स्वार्थ के अंधे हैं ।
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
" पाती जो है प्रीत की "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
*नि:स्वार्थ विद्यालय सृजित जो कर गए उनको नमन (गीत)*
*नि:स्वार्थ विद्यालय सृजित जो कर गए उनको नमन (गीत)*
Ravi Prakash
*वो नीला सितारा* ( 14 of 25 )
*वो नीला सितारा* ( 14 of 25 )
Kshma Urmila
कम कमाना कम ही खाना, कम बचाना दोस्तो!
कम कमाना कम ही खाना, कम बचाना दोस्तो!
सत्य कुमार प्रेमी
"फासले उम्र के" ‌‌
Chunnu Lal Gupta
क्यों दोष देते हो
क्यों दोष देते हो
Suryakant Dwivedi
शिगाफ़ तो भरे नहीं, लिहाफ़ चढ़  गया मगर
शिगाफ़ तो भरे नहीं, लिहाफ़ चढ़ गया मगर
Shweta Soni
हर एक मंजिल का अपना कहर निकला
हर एक मंजिल का अपना कहर निकला
कवि दीपक बवेजा
चोट
चोट
आकांक्षा राय
दहन
दहन
Shyam Sundar Subramanian
ये कटेगा
ये कटेगा
शेखर सिंह
लर्जिश बड़ी है जुबान -ए -मोहब्बत में अब तो
लर्जिश बड़ी है जुबान -ए -मोहब्बत में अब तो
सिद्धार्थ गोरखपुरी
सीता छंद आधृत मुक्तक
सीता छंद आधृत मुक्तक
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
जंग तो दिमाग से जीती जा सकती है......
जंग तो दिमाग से जीती जा सकती है......
shabina. Naaz
चंद अशआर -ग़ज़ल
चंद अशआर -ग़ज़ल
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
*क्या देखते हो *
*क्या देखते हो *
DR ARUN KUMAR SHASTRI
जिस्म से रूह को लेने,
जिस्म से रूह को लेने,
Pramila sultan
Loading...