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31 Mar 2024 · 1 min read

हर एक मंजिल का अपना कहर निकला

हर एक मंजिल का अपना कहर निकला
चंद अपने थे और तमाशा ए शहर निकला

जिसको दूर से हमनें देखा मंजिल की तरह
वो मरीचिका की तरह पानी सा लहर निकला

◦•●◉✿कवि दीपक सरल✿◉●•◦

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