‘ विरोधरस ‘---2. [ काव्य की नूतन विधा तेवरी में विरोधरस ] +रमेशराज
काव्य की नूतन विधा ‘तेवरी’ दलित, शोषित, पीडि़त, अपमानित, प्रताडि़त, बलत्कृत, आहत, उत्कोचित, असहाय, निर्बल और निरुपाय मानव की उन सारी मनः स्थितियों की अभिव्यक्ति है जो क्षोभ, तिलमिलाहट, बौखलाहट,...
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