Tag: ग़ज़ल/गीतिका
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रोने कोई देता नहीं और हँसी आती नहीं
suresh sangwan
भीगी पलकें सुखाने में ज़रा तो देर लगेगी
suresh sangwan
नज़रों ही नज़रों में मुहब्बत सी हुई जाती है
suresh sangwan
मोहब्बत से बढ़कर तो इबादत नहीं कोई
suresh sangwan
क्या पाएगा मंज़िल जो अभी चला भी नहीं
suresh sangwan
कुछ इस तरह ज़िंदगी में जान फूँकते रहे
suresh sangwan
सिवा तिरे मेरी दुनियाँ में कोई कमी नहीं है
suresh sangwan
हर गली हर मोड़ पे मेरे कदम अटके बहुत
suresh sangwan
छोड़ो ये बेकार की बातें
suresh sangwan
मेरा पता मुझको बता मेरे ख़ुदा
suresh sangwan
तू सोए तो हो जाएं सवेरे मेरी अना
suresh sangwan
महफ़िल में राज़दारों की बात करता है
suresh sangwan
छोड़ा हाथ हौसले ने न डरूँ तो क्या करूं
suresh sangwan
ये दिल है सरफ़िरा गर कभी घूम गया तो घूम गया
suresh sangwan
बहकने की बात थी कुछ संभलने का इशारा था
suresh sangwan
ख़ामोश रहकर बोलते हैं रंग तस्वीर के
suresh sangwan
मोहब्बत के शरर का नूर है
suresh sangwan
नहीं नफ़रत से ये मोहब्बत से डरा जाय है
suresh sangwan
चल ना होली खेलें यार
suresh sangwan
घटायें गर करके हिसाब चली जाती
suresh sangwan
पुरानी क़िताबों से धूल झाड़ते रहना
suresh sangwan
दीवानगी हद में रही तो मोहब्बत कैसी
suresh sangwan
एक ही सवाल के हज़ारों जवाब मिलते हैं
suresh sangwan
तेरी याद आज फिर चश्म-ए-तर कर गई है
suresh sangwan
इरादा -ए- वस्ल-ए-यार है मौसम जैसा भी हो
suresh sangwan
तुम साथ हो तो मेरा खुदा हो खुदाई हो
suresh sangwan
बज़म-ए-दुनियाँ से दूर कहीं ले चल
suresh sangwan
कारवान -ए- बहार चलें
suresh sangwan
ज़मीं पर उतरने की फ़िराक़ देखे है
suresh sangwan
वतन के बच्चे किधर जा रहे बताओ तो सही
suresh sangwan
हसरतें उठती हैं जज़्बात मचल जाते हैं
suresh sangwan
ख़्वाब मेरी आँखों के न बिखरने देगा
suresh sangwan
वो जबां पर कहकहों का आलम रखते हैं
suresh sangwan
तूने ही आतिश-ए-ईश्क़ लगाई मैने कब चाही
suresh sangwan
शाखें फूलों वाली झुकी- झुकी- सी हैं इन दिनों
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वक़्त के पाँव में जंज़ीर डालने का वक़्त था
suresh sangwan
तेरी मुहब्बत में हम खुद से गये हैं
suresh sangwan
बिन मोहब्बत के कहीं अफलाक़ नहीं होते
suresh sangwan
तू वो नहीं इस दिल को बताने के लिए आ
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कुछ रोज़ का बहकना है और दवा क्या है
suresh sangwan
सूरत- ए- दुनियां सँवरने में देर हो गई
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दिल-ए-मुज़तर को वाइज़ कोई समझाए तो सही
suresh sangwan
कमल केतकी गुलाब या गुलबहार हो तुम
suresh sangwan
तिरी बे-रूख़ी का कोई ग़म नहीं होता जानां
suresh sangwan
अपनी ज़ुल्मत-ओ-नफ़रत को अदा कहती है
suresh sangwan
मौसम आशिकाना बहुत है आज
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हर शय में ढलने की आदत डाल रखी है
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तेरे ईश्क़ को अपनी अमानत कर लूं
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ज़िंदगी अपनी है फिर भी उधार लगती है..
suresh sangwan
मात-पिता और गुरु का मान हमेशा रखना..
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