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9 Dec 2016 · 1 min read

तेरे ईश्क़ को अपनी अमानत कर लूं

तेरे ईश्क़ को अपनी अमानत कर लूं
हसरत तो है के तुझसे मोहब्बत कर लूं

ग़म-ए-जहां से कुछ रोज़ सही फुरक़त कर लूं
राह-ए-शौक़ से ए दिल तेरी निस्बत कर लूं

ए ज़िंदगी अपनी कुछ तेरी इज़्ज़त कर लूं
कुछ और नहीं तो बस यही महारत कर लूं

ज़िद ही पकड़ ली है तो ठहर जा पहले
तेरी गली तिरे शहर की मसाफत कर लूं

बहलाता है जब दिल को तो लगता है
मैं भी तेरे जैसी अपनी आदत कर लूं

मानूं तेरी ए दिल मिरे तू जो कहता है
आज उसूलों से अपने बग़ावत कर लूं

क्यूँ मैने राहों में पत्थर थे गिरा लिये
अपने ही दिल से अपनी मैं शिक़ायत कर लूं

—सुरेश सांगवान ‘सरु’

1 Comment · 323 Views
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