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11 Dec 2016 · 1 min read

भीगी पलकें सुखाने में ज़रा तो देर लगेगी

भीगी पलकें सुखाने में ज़रा तो देर लगेगी
सूखे ख्वाब सुलाने में ज़रा तो देर लगेगी

छिपा जाते हैं सच भी और झूठ भी नहीं कहते
नज़र से पर्दा उठाने में ज़रा तो देर लगेगी

धुआँ धुआँ हो गया अश्क़ बरसने के बाद देखो
गीले कागज़ जलाने में ज़रा तो देर लगेगी

कारवां- ए- तूफान गुज़रा है इन राहों से अभी
फिर से आशियाने को सजाने में ज़रा तो देर लगेगी

हाए जज़्बात के बादल अभी तो उठ के आए हैं
बिजलियाँ वहाँ गिराने में ज़रा तो देर लगेगी

खुशी की बात हो तो खुशी इतनी नहीं होती
पीकर अश्क़ मुस्कुराने में ज़रा तो देर लगेगी

आसमाँ को देखा है अभी ज़रा पंख खोले हैं
हौसले और होने में ‘सरु’ज़रा तो देर लगेगी

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