मुक्तक
अँधेरा जब मुक़द्दर बन के घर में बैठ जाता है,
मेरे कमरे का रोशनदान तब भी जगमगाता है,
किया जो फ़ैसला मुंसिफ़ ने वो बिल्कुल सही लेकिन,
ख़ुदा का फ़ैसला हर फ़ैसले के बाद आता है।
अँधेरा जब मुक़द्दर बन के घर में बैठ जाता है,
मेरे कमरे का रोशनदान तब भी जगमगाता है,
किया जो फ़ैसला मुंसिफ़ ने वो बिल्कुल सही लेकिन,
ख़ुदा का फ़ैसला हर फ़ैसले के बाद आता है।