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11 Sep 2018 · 1 min read

कुण्डलियाँ

1.
जन्नत जिनका खाब है , हूरें जिनकी चाह ,
खाकर धर्म अफ़ीम वो , चलते टेढ़ी राह .
चलते टेढ़ी राह , खाब हो पूरा कैसे ,
करें अमन पर वार , ग़ैर से लेकर पैसे .
कह गुलिया कविराय , फलेगी कैसे मन्नत ,
दोजख की चल राह , लोग ये चाहें जन्नत .
2.
बड़बोला नेता गया , बिन तोले ही बोल ,
देखो अब ये मीडिया , पोल रहा है खोल .
पोल रहा है खोल , खबर वो ही दिखलाता ,
नेता जी हैरान , समझ कुछ भी ना आता .
कह गुलिया कविराय , बना ये कैसा भोला ,
भाषण दिया मरोड़ , कहे फिर से बड़बोला .
3.
कैसी अब ये सीख ली , नेता ने तक़रीर ,
शब्दों में गरिमा नहीं , ना वाणी में धीर .
ना वाणी में धीर , बकें हैं जैसे गाली ,
सुनकर जिसको भीड़ , बजाए खुलकर ताली ,
कह गुलिया कविराय , सियासत ना थी ऐसी ,
कैसे हैं ये लोग , बनाएं बातें कैसी .
4.
जिनकी धरती पर उगे , होटल आलीशान ,
मिले आज सरकार से , ऐसे कई किसान .
ऐसे कई किसान , करी ना कभी किसानी ,
हुई फसल पर बात , सोच कर है हैरानी .
कह गुलिया कविराय , बात मत करना उनकी ,
जिनकी है सरकार , या बिकी धरती जिनकी .
5.
सारी बस्ती जब हुई , आतिश में तब्दील ,
तब वो अमन बहाल की , करने लगे अपील ,
करने लगे अपील , न बिगड़े भाईचारा ,
जल को करके कैद , आग को करें इशारा ,
कह गुलिया कविराय, समझते सब मक्कारी ,
करी अमन की बात , फूँक दी बस्ती सारी .

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